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आचार्य कुन्दकुन्द
अष्ट पाहड़ *
स्वामी विरचित
आपगा
दोहा
परमातम कूं वंदि करि, शुद्धभाव करतार ।
करूं भावपाहुड तणी, देशवचनिका सार ।। १।।
अर्थ
शुद्ध भाव के कर्ता परमात्मा की वंदना करके 'भावपाहुड़' की सारभूत देशभाषामय वचनिका करता हूँ।।१।।
इस प्रकार मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करके श्री कुन्दकुन्द आचार्यक त 'भावपाहुड़' ग्रंथ की देशभाषामय वचनिका लिखते हैं :
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