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________________ D अष्ट पाहुड़stion स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द SEOCE TOVAYANVAR CAMWAVAH Dor Dod BAVAMANAS 添添添添添添添添添添馬男樂事業蒸蒸業男崇勇 का देखना है, ३. कुछ के जातिस्मरण है, ४. कुछ के वेदना का अनुभव है, ५. कुछ के धर्म का श्रवण है एवं ६. कुछ के देवों की ऋद्धि का देखना है इत्यादि। कर्म के उपशमादि की अपेक्षा सम्यक्त्व के निम्न प्रकार हैं :१. उपशम सम्यक्त्व-उक्त बाह्य कारणों से मिथ्यात्व कर्म का उपशम होने पर उपशम सम्यक्त्व होता है। २. क्षयोपशम सम्यक्त्व-उपरोक्त सात प्रकृतियों में से छह का तो उपशम और क्षय हो एवं एक सम्यकप्रकृति का उदय हो तब क्षयोपशम सम्यक्त्व कहलाता है। इस प्रकृति के उदय से कुछ अतिचार मल लगता है। ३.क्षायिक सम्यक्त्व-उक्त सात प्रकृतियों का सत्ता में से नाश हो तब क्षायिक सम्यक्त्व होता है। सम्यग्दर्शन के निश्चय का प्रकार-उक्त प्रकार से उपशमादि होने पर जीव के परिणाम भेद से जो तीन प्रकार के होते हैं वे अति सूक्ष्म एवं केवलज्ञानगम्य होते हैं। यद्यपि (१) इन प्रकृतियों का द्रव्य जो पुद्गल परमाणुओं के स्कंध हैं वे अति सूक्ष्म हैं और उनमें फल देने की शक्ति रूप अनुभाग भी अति सूक्ष्म है, छद्मस्थ के ज्ञानगम्य नहीं है, उनका उपशमादि केवलज्ञानगम्य ही है और (२)उनका उपशमादि होने पर जीव के जो परिणाम सम्यक्त्व रूप होते हैं वे भी सूक्ष्म एवं केवलज्ञानगम्य हैं तथापि छदमस्थ के ज्ञान में आने योग्य कुछ जीव के परिणाम होते हैं जो उसका बोध कराने के बाह्य चिन्ह हैं और उनकी परीक्षा करके निश्चय करने का व्यवहार है। यदि ऐसा न हो तो छद्मस्थ व्यवहारी जीव के सम्यक्त्व का निश्चय नहीं हो तब आस्तिक्य का अभाव ठहरे और व्यवहार का लोप हो-यह बड़ा दोष आवे इसलिए बाह्य चिन्हों की आगम, अनुमान एवं स्वानुभव से परीक्षा करके सम्यक्त्व का निश्चय करना। सम्यग्दर्शन का निश्चय करने के बाह्य चिन्ह-वे चिन्ह कौन से हैं सो ही लिखते हैं :(१)मुख्य चिन्ह आत्मानुभूति-उपाधिरहित शुद्ध ज्ञान चेतनास्वरूप आत्मा की अनुभूति का होना ही मुख्य चिन्ह है। यद्यपि यह अनुभूति ज्ञान का विशेष है तथापि सम्यक्त्व के होने पर ही यह होती है इसलिए इसको बाह्य चिन्ह कहते हैं। ज्ञान है सो अपना आपके स्वसंवेदन रूप है उस रागादि विकार रहित शुद्ध ज्ञानमात्र का अपने को आस्वादन होता है कि 'जो यह शुद्ध ज्ञान है सो मैं हूँ और 崇崇明崇崇崇明崇廉崇明崇明崇崇崇崇勇 Trmy 崇先养养崇崇崇崇崇勇兼業助兼崇勇兼勇攀事業業帶男
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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