________________
गाथा चित्रावली အထ3=
000000000000000000000000000000000
सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, मोह से रहित, वीतराग परम पद में स्थित, त्रिजगत के द्वारा वंदनीय
और भव्य जीवों से पूज्य अरहंतों की वंदना करके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की शुद्धि का कारण तथा मोक्ष आराधन का हेतुभूत चारित्रपाहुड़ कहूँगा।। गा० १,२।। वह जिनदेव का श्रद्धान जब निःशंकित आदि गुणों से विशुद्ध होता है तथा यथार्थ ज्ञान से युक्त आचरण किया जाता है तो प्रथम सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहलाता है सो मोक्षस्थान के लिए होता है।।८।। हे भव्य ! तू ज्ञान के होते तो अज्ञान को, विशुद्ध सम्यक्त्व के होते मिथ्यात्व को तथा अहिंसा लक्षण धर्म के होते अधम हिंसा के आरम्भ को छोड़।।१५।। हे भव्य ! तू परिग्रह का त्याग जिसमें हो ऐसी दीक्षा ग्रहण कर, उत्तम संयम भाव के होते सम्यक् प्रकार तप में प्रवृत्ति कर क्योंकि मोह रहित वीतराग भाव के होने पर ही अत्यंत विशुद्ध ध्यान होता
है।। १६।। चारित्र पाहुड़।।
000000000000000000000000000000000
-pocacadwas
३-४६