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ज्ञान-दर्शन मय निजातम को सदा जो ध्यावते । अत्यल्पकाल स्वकाल में वे सर्व कर्म विमुक्त हों ॥१८९।। बंध के कारण कहे हैं भाव अध्यवसान ही । मिथ्यात्व अर अज्ञान अविरत-भाव एवं योग भी ॥१९०॥ इनके बिना है आस्त्रवों का रोध सम्यग्ज्ञानि के । अर आस्त्रवों के रोध से ही कर्म का भी रोध है ॥१९१।। कर्म के अवरोध से नोकर्म का अवरोध हो । नोकर्म के अवरोध से संसार का अवरोध हो ॥१९२।।