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(३७)
यदि कर्ममय परिणाम पुद्गल द्रव्य का जिय साथ हो । तो जीव भी जड़कर्मवत् कर्मत्व को ही प्राप्त हो ॥१३७॥ . किन्तु जब जियभाव बिन ही एक पुद्गल द्रव्य का । यह कर्ममय परिणाम है तो जीव जड़मय क्यों बने ? ॥१३८॥ इस जीव के रागादि पुद्गलकर्म में भी हों यदी । तो जीववत जड़कर्म भी रागादिमय हो जावेंगे ॥१३९।। किन्तु जब जड़कर्म बिन ही जीव के रागादि हों । तब कर्मजड़ पुद्गलमयी रागादिमय कैसे बनें ? ॥१४०॥ कर्म से आबद्ध जिय यह कथन है व्यवहार का । पर कर्म से ना बद्ध जिय यह कथन है परमार्थ का ॥१४१॥