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सर्वज्ञ ने देखा सदा उपयोग लक्षण जीव यह । पुद्गलमयी हो किसतरह किसतरह तू अपना कहे ? ॥ २४ ॥ जीवमय पुद्गल तथा पुद्गलमयी हो जीव जब । ये मेरे पुद्गल द्रव्य हैं - यह कहा जा सकता है तब ॥ १५ ॥ यदि देह ना हो जीव तो तीर्थंकरों का स्तवन । सब असत् होगा इसलिए बस देह ही है आतमा ॥ २६ ॥ 'देह-चेतन एक हैं' - यह वचन है व्यवहार का । 'ये एक हो सकते नहीं' - यह कथन है परमार्थ का ॥ २७ ॥ इस आतमा से भिन्न पुद्गल रचित तन का स्तवन । कर मानना कि हो गया है केवली का स्तवन ॥ २८ ॥