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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
१६. श्री शान्तिनाथ भगवान का अर्घ्य
(त्रिभंगी) वसु द्रव्य सँवारी, तुम ढिंग धारी, आनन्दकारी दृग प्यारी। तुम हो भवतारी, करुनाधारी, यातँ थारी शरनारी ।। श्री शान्तिजिनेशं, नुतशक्रेशं, वृषचक्रेशं चक्रेशं । हनि अरिचक्रेशं, हे गुनधेशं दयामृतेशं मक्रेशं ।। ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १७. श्री कुन्थुनाथ भगवान का अर्घ्य
(चाल लावनी) जल चन्दन तन्दुल प्रसून चरु, दीप धूप लेरी। फलजुत जजन करों मन सुख धरि, हरो जगत फेरी ।। कुन्थु सुन अरज दास केरी, नाथ सुनि अरज दास केरी।
भवसिन्धु पस्यो हों नाथ, निकारो बाँह पकर मेरी ।। ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १८. श्री अरनाथ भगवान का अर्घ्य
(त्रिभंगी) सुचि स्वच्छ पटीरं, गंधगहीरं, तंदुलशीरं पुष्प चरूँ। वर दीपं धूपं, आनन्दरूपं, लै फल भूपं अर्घ्य करूँ।। प्रभु दीनदयालं, अरिकुलकालं, विरदविशालं सुकुमालम् । हनि मम जंजालं, हे जगपालं, अनगुनमालं वरभालम् ।। ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। १९. श्री मल्लिनाथ भगवान का अर्घ्य
(जोगीरासा ) जल फल अरघ मिलाय गाय गुन पूजौं भगति बढ़ाई। शिवपदराज हेत हे श्रीधर, शरन गही मैं आई ।।