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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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दृष्टि हुई आप सम ही प्रभो जब । परिणति भी होगी तुम्हारे ही सम तब ॥ नहीं मुझको चिन्ता मैं निर्दोष ज्ञायक ।
नहीं पर से संबंध मैं ही ज्ञेय ज्ञायक । हुआ दुर्विकल्पों का जिनवर सफाया ।
तिहूँ लोक में नाथ अनुपम जताया ।। ५ ।। सर्वांगसुखमय स्वयंसिद्ध निर्मल ।
शक्ति अनन्तमयी एक अविचल ।। बिन्मूर्ति चिन्मूर्ति भगवान आत्मा ।
तिहूँ जग में नमनीय शाश्वत चिदात्मा ।। हो अद्वैत वन्दन प्रभो हर्ष छाया ।
तिहूँ लोक में नाथ अनुपम जताया ।। ६ ।। ॐ ह्रीं श्री वीतरागदेवाय अनर्घ्यपदप्राप्तये महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा)
आपहि ज्ञायक देव है, आप आपका ज्ञेय ।
अखिल विश्व में आप ही, ध्येय ज्ञेय श्रद्धेय ॥ ( इति पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )
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