________________
(वसंततिलका) देवासुरेन्द्र नर नाग समर्चितेभ्यः। पाप प्रणाशकर भव्यं मनोहरेभ्यः।। घंटाध्वजादि परिवार विभूषितेभ्यो।
नित्यं नमो जगति सर्व जिनालयेभ्यः।।5।। इन्द्र, नरेन्द्रों, असुरेन्द्रों से धरणेन्द्रों से पूजित हैं। पाप प्रणाशक, भव्यजनों का मन आकर्षित करते हैं।। घन्टा, ध्वजा, घूपघट माला मङ्गल द्रव्य विभूषित हैं। जग के सब जिन चैत्यालय को नित प्रति वन्दन करता मैं ।।5 ।।
(कार्योत्सर्ग करें)
अंचलिका हे प्रभु! चैत्य भक्ति करके अब मैंने कायोत्सर्ग किया। इसमें लगे हुए दोषों का अब मैं आलोचन करता।। अघो-मध्य अरु ऊर्ध्व लोक के कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालय। चतुर्निकायी सुर परिवार भक्ति से आते जिन-आलय।।।।। दिव्य गन्ध, जल अक्षत दिव्य सुमन धूप फल अरु नैवेद्य। नित्य वन्दना पूजा अर्चा नमस्कार करते सब देव।। मैं भी नित्य वन्दना पूजा अर्चा करता, हों दुख क्षय। बोधि लाभ हो सुगति गमन हो जिन गुण सम्पत्ति हो अक्षय।।2।।