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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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आौषधि खेलोषधि विप्रौषधि सर्वोषधि के धारी । तप प्रसिद्ध कृतकृत्य हुए उन मुनिराजों को नमन करूँ ।।16।।
अमृत-मधु- घृत-क्षीरस्रावि अक्षीण महानस के धारी । मन-वच-तन बल ऋद्धियुक्त को मन-वच-तन से नमन करूँ ।।17 ।।
कोष्ठ बीज पादानुसारि, संभिन्न श्रोत्र ऋद्धि धारी । अवग्रह ईहा में समर्थ, सूत्रार्थ निपुण मुनि को वन्दूँ ।। 18 ।। मति श्रुत अवधि मन:पर्ययज्ञानी अरु केवलज्ञानी को । वन्दन जग प्रदीप्त प्रत्यक्ष परोक्ष ज्ञानधारी मुनि को ।।19 ।। नभ-तंतु-जल-पर्वत-अटवीगामी जङ्गाधारी को । वंदन, ऋद्धि विक्रिया, विद्याधर अरु प्रज्ञा श्रमणों को। 120 ।।
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चतुरांगल ऊपर एवं फल-फूलों पर चलने वाले । अनुपम तप से पूज्य सुरासुर से वन्दित को नमन करूँ ।। 21 ।। जीत लिया भय-उपसर्गों को इन्द्रिय और परिग्रह को । वन्दन मोह-राग-रुष विजयी सुख-दुःख समताधारी को । 122 || राग-द्वेष से रहित और मुझसे स्तुत्य सभी पद - पूज्य । मुनिगण को उत्तम समाधि दें मेरे भी दुःख दूर करें । 12311 अंचलिका
प्रभु ! योग भक्ति करके अब मैंने कायोत्सर्ग किया। इसमें लगे हुए दोषों का अब मैं आलोचन करता ।। ढाई द्वीप-द्वय सिन्धु, कर्मभूमि पन्द्रह आतापन योग । वृक्षमूल, नभवास योग, वीरासन एक पार्श्वमय योग ।।1।।
कुक्कुट आसन, योग तथा उपवास पक्ष-उपवास सदा । योग सहित सब साधु गणों की करता हूँ मैं नित अर्चा ।। पूजन वन्दन नमन करूँ मैं होवे सब दुःख कर्मक्षय ।
बोधिलाभ हो सुगति गमन हो जिनगुण संपत्ति हो अक्षय । 2 ।।
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