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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
हे जिनवाणी माता... || हे जिनवाणी माता! तमको लाखों प्रणाम. तमको क्रोडों प्रणाम। शिवसुखदानी माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।टेक।। तू वस्तु-स्वरूप बतावे, अरु सकल विरोध मिटावे। हे स्याद्वाद विख्याता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ॥१॥ तू करे ज्ञान का मण्डन, मिथ्यात कुमारग खण्डन ।। हे तीन जगत की माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।२।। तू लोकालोक प्रकाशे, चर-अचर पदार्थ विकाशे। हे विश्वतत्त्व की ज्ञाता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ॥३॥ शुद्धातम तत्त्व दिखावे, रत्नत्रय पथ प्रकटावे। निज आनन्द अमृतदाता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।४।। हे मात! कृपा अब कीजे, परभाव सकल हर लीजे। 'शिवराम' सदा गुण गाता तुमको लाखोंप्रणाम, तुमको क्रोड़ों प्रणाम ।।५।।
जिन-बैन सुनत मोरी... जिन बैन सुनत मोरी भूल भगी ।।टेक।। कर्मस्वभाव भाव चेतन को, भिन्न पिछानन सुमति जगी।।१।। निज अनुभूति सहज ज्ञायकता, सो चिर रुष-तुष-मैल पगी ।।२।। स्याद्वाद धुनि निर्मल जलतें, विमल भई समभाव लगी।।३।। संशय-मोह-भरमता विघटी, प्रकटी आतम सोंज सगी ।।४।। 'दौल' अपूरव मंगल पायो। शिवसुख लेन होस उमगी ।।५।।