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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
तुम्हीं हो समयसार निज में प्रकाशी।
तुम्हीं हो स्वचारित्र आतमविकाशी ।। तुम्हीं हो निराम्रव निराहार ज्ञानी।
तुम्हीं निर्जराबिन परम सुखनिधानी ।।९।। तुम्हीं हो अबंधं तुम्ही हो अमोक्षं ।
तुम्ही कल्पनातीत हो नित्य मोक्षं ।। तुम्ही हो अवाच्यं तुम्ही हो अचिन्त्यं ।
तुम्हीं हो सुवाच्यं सु गुणराज नित्यं ।।१०।। तुम्हीं सिद्धराजं तुम्हीं मोक्षराजं ।
तुम्हीं तीन भू के ऊरध विराजं ।। तुम्हीं वीतरागं तदपि काज सारं ।
तुम्हीं भक्तजन भाव का मल निवारं ।।११।। करैं मोक्षकल्याणकं भक्त भीने।
फु भाव शुद्धं यही भाव कीने ।। नमे हैं जजे हैं सु आनन्द धारें।
शरण मंगलोत्तम तुम्हीं को विचारें ।।१२।।
(दोहा) परम सिद्ध चौबीस जिन, वर्तमान सुखकार।
पूजत भजत सु भाव से, होय विघ्न निरवार ।। ॐ ह्रीं ऋषभादिवीरांतचतुर्विंशतिवर्तमानजिनेन्द्रेभ्यः मोक्षकल्याणकप्राप्तेभ्यः महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
बिम्बप्रतिष्ठा हो सफल, नरनारी अघहार। वीतराग-विज्ञानमय, धर्म बढ़ो अधिकार ।।
पुष्पांजलिं क्षिपेत्।