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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
नाथ दीजें हमें धर्म अमृत महा, इह बिना सुख नहीं दुःख भव में सहा ।।५।। ना क्षुधा ना तृषा राग ना द्वेष है, खेद चिन्ता नहीं आर्ति ना क्लेश है। लोभ मद क्रोध माया नहीं लेश है,
वन्दता हूँ तुम्हें तू हि परमेश है।।६।। ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तचतुर्तिशतिजिनेन्द्रेभ्यः ज्ञानकल्याणकप्राप्तेभ्यः महाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा। दिव्यध्वनि प्रसारण हेतु इन्द्रों द्वारा प्रार्थना
( पद्धरि) जय परम ज्योति ब्रह्मा मुनीश, जय आदिदेव वृषनाथ ईश। परमेष्ठी परमातम जिनेश, अजरामर अक्षय गुण विशेष ।।१।। शङ्कर शिवकर हर सर्व मोह, योगी योगीश्वर कामद्रोह। हो सूक्ष्म निरञ्जन सिद्ध बुद्ध, कर्मांजन मेटन तोय शुद्ध ।।२।। भविकमल प्रकाशन रवि महान, उत्तम वागीश्वर राग हान । हो वीत द्वेष हो ब्रह्म रूप, सम्यग्दृष्टी गुणराज भूप ।।३।। निर्मल सुख इन्द्रिय रहित धार, सर्वज्ञ सर्वदर्शी अपार । तुम वीर्य अनन्त धरो जिनेश, तुम गुण पावत नाहिं गणेश ।।४।। तुम नाम लिये अघ दूर जाय, तुम दर्शन तें भवभय नशाय । स्वामिन् अब तत्त्वन का प्रभेद, कहिये जासे हट कर्म छेद ।।५।। विहार करने हेतु इन्द्रों द्वारा प्रार्थना
(स्तुति) धन्य-धन्य जिनराज प्रमाणा, धर्मवृष्टिकारी भगवाना। सत्यमार्ग दरशावनहारे, सरल शुद्ध मग चालनहारे ।।१।।