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प्रतिष्ठा नाम्नलि
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(रोला )
जिनप्रतिमा पर अमृतसम जलकण अति शोभित । आत्म- गगन में गुण अनन्त तारे भवि मोहित ।। हो अभेद का लक्ष्य भेद का करता वर्जन । शुद्ध वस्त्र से जल-कण का करता परिमार्जन ।। ( प्रतिमा को शुद्ध वस्त्र से पोंछे )
(दोहा)
श्री जिनवर की भक्ति से दूर होय भव-भार। उर-सिंहासन धापिये, प्रिय चैतन्य कुमार ।।
( जिनप्रतिमा को सिंहासन पर विराजमान करें तथा निम्न छन्द बोलकर अर्घ्य चढ़ायें । )
जल - गन्धादिक द्रव्य से, पूजूं श्री जिनराज ।
पूर्ण अर्घ्य अर्पित करूँ, पाऊँ चेतनराज ।। ॐ ह्रीं श्री पीठस्थितजिनाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जिन संस्पर्शित नीर यह, गन्धोदक गुण खान । मस्तक पर धारूँ सदा, बनूँ स्वयं भगवान । (मस्तक पर गन्धोदक चढ़ायें। अन्य किसी अंग से गन्धोदक का स्पर्श वर्जित है। )
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प्रक्षाल के सम्बन्ध में विचारणीय प्रमुख बिन्दु ह्र
१. अरहन्त भगवान का अभिषेक नहीं होता, जिनबिम्ब का प्रक्षाल किया जाता है, जो अभिषेक के नाम से प्रचलित है।
२. जिनबिम्ब का प्रक्षाल शुद्ध वस्त्र पहनकर मात्र शुद्ध जल से किया जाये।
३. प्रक्षाल मात्र पुरुषों द्वारा ही किया जाये। महिलायें जिनबिम्ब को स्पर्श न करें ।
४. जिनबिम्ब का प्रक्षाल प्रतिदिन एक बार हो जाने के पश्चात् बार-बार न करें ।
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