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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
जयमाला
(भुजंगप्रयात) नमो जै नमो जै नमो जै जिनेशा,
तुम्ही ज्ञान सूरज तुम्ही शिव प्रवेशा। तुम्हें दर्श करके महामोह भाजे,
तुम्हें पर्श करके सकल ताप भाजे ।।१।। तुम्हें ध्यान में धारते जो गिराई,
परम आत्म-अनुभव छटा सार पाई। तुम्हें पूजते नित्य इन्द्रादि देवा,
लहैं पुण्य अद्भुत परम ज्ञान-मेवा ।।२।। तुम्हारो जनम तीन भूदुःख निवारी,
महा मोह मिथ्यात हिय से निकारी। तुम्हीं तीन बोधं धरे, जन्म ही से,
तुम्हें दर्शनं क्षायिकं रहे जन्म ही से ।।३।। तुम्हें आत्मदर्शन रहे जन्म ही से,
तुम्हें तत्त्वबोधं रहे जन्म ही से। तुम्हारा महा पुण्य आश्चर्यकारी,
सु महिमा तुम्हारी सदा पापहारी ।।४।। करा शुभ न्हवन क्षीरसागर जुजल से,
मिटी कालिमा पाप की अंग पर से। हआ जन्म सफलं करी सेव देवा,
लहूँ पद तुम्हारा इसी हेतु सेवा ।।५।।
(दोहा) श्री जिन चौबीस जन्म की, महिमा उर में धार।
पूज करत पातक टलें, बढ़े ज्ञान अधिकार ।। ॐ हीं चतुर्विंशतिजिनेभ्यो जन्मकल्याणकप्राप्तेभ्यः महायँ निर्वपामीति स्वाहा ।