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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n रखें सुबांध मन कपी महान है जु नटखटा, बनाय सांकलान शास्त्रपाठ में जुटावता । धरैं स्वभाव शुद्ध नित्य आत्म को रमावते, जूँ यती उदय महान ज्ञानसूर्य पावते ॥ २० ॥ ॐ ह्रीं श्री स्वाध्यायावश्यकगुणधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।। १९० ।। तजैं ममत्व काय का इसे अनित्य जानते, खण्ड मृत्तिकासु पिण्ड सम प्रमाणते, खड़े बनी गुफा महा स्व-ध्यान सार धारते, जजूँ यती महान मोह - राग-द्वेष टारते ।। २१ ।। ॐ ह्रीं श्री कायोत्सर्गावश्यकगुणधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा । । १९१ ।। करें शयन सु भूमि में कठोर कंकड़ानि की, कभी नहीं विचारते, पलंग खाट पालकी । मुहूर्त एक भी नहीं गमावते कुनींद में, जूँ यतीश सोचते सु आत्मतत्त्व नींद में ।। २२ । ॐ ह्रीं श्री भूशयननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१९२।। 111 करें नहीं नहान सर्व राग देह का हते, पसेव ग्रीष्म में पड़ें न शीत- अम्बु चाहते । बनी प्रबल पवित्र और मन्त्र शुद्ध धारते, जजूँ यतीश शुद्ध पाद कर्म मैल टारते ।। २३ ।। ॐ ह्रीं श्री अस्नाननियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१९३।। करैं नहीं कबूल छाल वस्त्र खण्ड धोवती, दिगानि वस्त्र धार लाज सङ्ग त्याग रोवती । बने पवित्र अङ्ग शुद्ध बाल से विचार हैं, जजूँ यतीश काम जीत शीलखड्ग धार हैं ।। २४॥ ह्रीं श्री सर्वथावस्त्रत्यागनियमधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।।१९४/५
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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