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प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि
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अट्ठाईस गुणयुक्त साधुपरमेष्ठी के लिए अर्घ्य
( नाराच )
तजे सु राग-द्वेष भाव शुद्धभाव धारते, परम स्वरूप आपका समाधि से विचारते ।
करें दया सुप्राणि जंतु चर-अचर बचावते,
जजों यति महान प्राणिरक्षव्रत निभावते । । १ । ।
ॐ ह्रीं श्री अहिंसामहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७१।।
असत्य सर्व त्याग वाक् शुद्धता प्रचारते, जिनागमानुकूल तत्त्व सत्य सत्य धारते ।
अनेक नय प्रकार के वचन विरोध टारते, जजों यति महान सत्यव्रत सदा सम्हारते ।।२।।
ॐ ह्रीं श्री अनृतपरित्यागमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं नि. स्वाहा ।। १७२ ।।
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अचौर्यव्रत महान धार शौचभाव भावते,
जजों यती सदा सुज्ञान ध्यान मन रमावते । सुतृप्त हैं महान आत्मजन्य सौख्य पावते. जजों यती सदा सुज्ञान ध्यान मन रमावते ॥ ३॥
ॐ ह्रीं श्री अचौर्यमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७३ ।।
सुब्रह्मचर्य व्रत महान धार शील पालते,
न काष्ठमय कलत्र देव भामिनी विचारते ।
मनुष्यणी सु पशुतियाँ कभी न मन रमावते, जाजें यती न स्वप्नमाहिं शील को गमावते ||४|| ॐ ह्रीं श्री ब्रह्मचर्यमहाव्रतधारकसाधुपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।१७४।।
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