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निर्विकल्प आत्मानुभूति के पूर्व
विषय-सूची
विषय
विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण अनूठा है, अत: यह पठनीय एवं संग्रहणीय है। इस कृति में आत्मदर्शन की विधि वीतराग परिणति का स्वरूप, सर्वज्ञता, देशनालब्धि एवं प्रायोग्यलब्धि और वस्तुस्वरूप का अनुसंधान, आत्मा का स्व-पर प्रकाशकपना, सम्यक पुरुषार्थ, पाँच समवाय आदि जैनदर्शन के अनेक मार्मिक बिन्दुओं का स्पष्टीकरण करने का सफल प्रयास किया गया है।
इन सब पुस्तकों के अध्ययन-मनन-चिन्तन से पाठक नि:संदेह आत्मानुभूति की प्रक्रिया से सुपरिचित तो होंगे ही; साथ ही श्री पाटनीजी के गहन अध्ययन से भी परिचित होंगे तथा उनके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से यह प्रेरणा प्राप्त करेंगे कि हम भी उनके समान लौकिक कार्यों को यथासाध्य साधते हुए लोकोत्तर कार्य करें।
___इस पुस्तक के सुन्दर मुद्रण के लिए श्री रमेशचन्द शास्त्री ने श्रद्धापूर्वक कम्पोजिंग के साथ-साथ अनेकों बार प्रूफ आदि के द्वारा इसे सुन्दर बनाया तथा श्री अखिल बंसल ने इसे सुसज्जित रूप दिया; इसके लिए दोनों महानुभाव धन्यवाद के पात्र हैं।
- मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट
ए-४, बापूनगर, जयपुर
विषय परिचय
आत्मदर्शन की विधि आगम से समझना द्वादशांग का सार एकमात्र वीतरागता वीतराग परिणति का स्वरूप सर्वज्ञता का स्वरूप देशनालब्धि रुचिपूर्वक उपदेश का ग्रहण ही देशनालब्धि है प्रायोग्यलब्धि के प्रवेश योग्य निर्णय उक्त निर्णय पर पहुँचने की प्रक्रिया स्वद्रव्य की खोजपूर्वक आत्मानुभूति का उपाय उत्पाद-व्यय पक्ष का अनुसंधान आत्मा के विकार का कर्ता कौन ? मिथ्या-मान्यता की उत्पत्ति कैसे? व नाश का उपाय.. अस्ति की मुख्यता से आत्मस्वरूप को समझना आत्मा दर्शन-ज्ञान ज्योति स्वरूप है ज्ञान की स्व-परप्रकाशकता, किसप्रकार ? स्व-समयता अथवा पर-समयता कैसे ? ध्रुव में एकत्व होने में बाधक कारण ? पर का ज्ञान होते रहने से ज्ञान स्व में एकाग्र कैसे होगा ज्ञानी की परिणति में सर्वज्ञता मानना मिथ्या छद्यस्थ ज्ञान की स्व-पर प्रकाशता ध्रुव की एकाग्रता में बाधक लगती है रुचि की उग्रता किसे समझा जावे ? अनन्तसुख का भण्डार ध्रुव ही है- ऐसी श्रद्धा
वस्तुत: बिना समझे सच्ची महिमा नहीं आती। बिना समझे कुछ भी लाभ नहीं होता। जैसे लड़के को पाँच किलो शक्कर लाने को कहा हो और वह समझे बिना लेने जाये तो रटा हुआ भूल जावे और काम नहीं हो। अत: पहिले यह निर्णय करना चाहिये कि इस काम के लिये यह चीज मँगाते हैं; वैसे ही जिनका स्मरण करना है, पहले उनका स्वरूप जाने तो उत्तम फल होता है। स्वरूप समझे बिना उत्तम फल की प्राप्ति नहीं होती। पंचपरमेष्ठी के स्वरूप भान सहित नमस्कार करने से उत्तम फल प्राप्त होता है। - मोक्षमार्ग प्रकाशक प्रवचन, पृष्ठ-४