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________________ प्रकाशकीय जैनदर्शन के मर्मज्ञ विद्वान डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल कृत निमित्तोपादान का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। जैनदर्शन के आध्यात्मिक क्षेत्र में पूज्य श्रीकानजीस्वामी के उदय के साथ-साथ जो विषय बहुचर्चित हुए उनमें प्रमुख हैं - क्रमबद्धपर्याय, निश्चय - व्यवहार और उपादाननिमित्त । इनके संदर्भ में गाँव-गाँव में चलने वाली चर्चा ने एक विवाद का रूप ले लिया था। ज्यों-ज्यों यह आध्यात्मिक क्रान्ति विस्तार को प्राप्त हुई, त्यों-त्यों ही विवाद ने भी उग्ररूप धारण किया । विवाद की गहराई में जाकर देखने पर एक तथ्य सामने आया कि विषय का अपरिचय ही विवाद का मूल कारण है। अतः यह निश्चय किया गया कि यदि इन विषयों को आगम के आलोक में सरल-सुबोध शैली में जन-जन के समक्ष प्रस्तुत किया जाएं तो विवाद सहज ही शान्त हो सकते हैं। जब डॉ. भारिल्ल ने इन विषयों पर नगर-नगर में सरल-सुबोध शैली में सप्रमाण प्रवचन किये तो उसका अनुकूल प्रभाव सामने आया। तब यह अनुभव किया गया कि यदि इन विषयों को लिखित रूप में भी प्रस्तुत किया जाय तो सफलता अवश्यंभावी है। परिणामस्वरूप क्रमबद्धपर्याय और परमभावप्रकाशक नयचक्र जैसी कृतियाँ सामने आईं; जिन्होंने तत्सम्बन्धी विवादों को लगभग समाप्त ही कर दिया । उसी क्रम में यह 'निमित्तोपादान' कृति है। हमें विश्वास है कि इससे आध्यात्मिक समाज लाभान्वित होगी । प्रस्तुत कृति के लेखन कार्य हेतु डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की कीमत कम करने में जिन महानुभावों ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, ट्रस्ट उनका हृदय से आभारी है। साथ ही प्रकाशन व्यवस्था हेतु विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल भी धन्यवाद के पात्र हैं। आप सभी इस कृति से भरपूर लाभ उठायें - इसी भावना के साथ । - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मंत्री
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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