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________________ निमित्तोपादान हो सकती है। इसी बात को स्पष्ट करने के लिये ऐसा कहा जाता है कि उपदेश को कारण तब कहेंगे कि जब सुननेवाले को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाय । 26 वस्तुत: बात यह है कि ऐसा तो नियम है कि जब किसी को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी तो उसके पूर्व उसे देशनालब्धि की प्राप्ति भी अवश्य होगी ही; पर ऐसा नियम नहीं है कि देशनालब्धि हो जाने पर नियम से सम्यग्दर्शन होगा ही । यही कारण है कि देशनालब्धिरूप कारण पहले से विद्यमान होने पर भी उसका कथन कार्योत्पत्ति के बाद ही किया जाता है। (३) प्रश्न : यदि ऐसा है तो फिर तीर्थंकरों, साधु-संतों एवं ज्ञानियों की देशना को निमित्त कारण कहा जाय या नहीं? शास्त्रों में तो इन सबको सम्यग्दर्शन का निमित्तकारण कहा गया है। जिनबिम्ब दर्शन को भी सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा गया है। उत्तर : सामान्य से तो तीर्थंकरों, साधु-संतों एवं ज्ञानियों के उपदेश एवं जिनबिम्ब दर्शन आदि को सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा ही जाता है और कहा भी जाना चाहिये; पर वह कारण है किसको, उसी को न कि जिसको सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई हो। इसलिए जब उनके निमित्त से किसी व्यक्ति विशेष को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है; तब उस सम्यग्दर्शनरूप कार्य का कारण उनके उपदेश को कहा जाता है । सामान्य और विशेष कथन में यह अन्तर पड़ता ही है । (४) प्रश्न: जिनबिम्बदर्शन को सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा गया है, पर किसी कामी व्यक्ति को जिनबिम्ब की नग्नदशा देखकर कामभाव की उत्पत्ति हो जाय तो क्या उस जिनबिम्ब को विकारोत्पत्ति का निमित्त भी कहा जायेगा ? उत्तर : भाई, बात ऐसी है कि जिनबिम्ब तो मुख्यतः सम्यग्दर्शन या वैराग्य के ही निमित्त होते हैं और इसीकारण उनकी स्थापना भी की जाती
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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