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________________ निमित्तोपादान और जो यह कहा जाता है कि शक्ति नित्य है कि अनित्य है इत्यादि । सो वहाँ क्या यह द्रव्यशक्ति या पर्यायशक्ति के विषय में प्रश्न है; क्योंकि पदार्थ द्रव्यपर्यायशक्तिस्वरूप होते हैं। उनमें से द्रव्यशक्ति नित्य ही है; क्योंकि द्रव्य अनादिनिधन स्वभाववाला होता है । पर्यायशक्ति तो अनित्य ही है; क्योंकि पर्याय सादि- सान्त होती है। I 10 यदि कहा जाए कि शक्ति नित्य है, इसलिये सहकारी कारणों की अपेक्षा किये बिना ही कार्यकारीपने का प्रसंग आ जाएगा - सो ऐसा नहीं है; क्योंकि केवल द्रव्यशक्ति का कार्यकारीपना स्वीकार नहीं किया गया है; किन्तु पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति कार्य करने में समर्थ होती है; क्योंकि विशिष्टपर्याय से परिणत द्रव्य का ही कार्यकारीपना प्रतीत होता है और उसकी परिणति सहकारी कारणसापेक्ष होती है; क्योंकि पर्यायशक्ति तभी होती है। इसलिये न तो सर्वदा कार्य की उत्पत्ति का प्रसंग आता है और न ही सहकारी कारणों की अपेक्षा की व्यर्थता प्राप्त होती है । इसप्रकार यह ज्ञात हो जाने पर कि सहकारी कारणसापेक्ष विशिष्टपर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारिणी मानी गई है; केवल उदासीन या प्रेरक निमित्तों के बल पर मात्र द्रव्यशक्ति से ही द्रव्य में कार्य नहीं होता । यदि द्रव्यशक्ति को बाह्यनिमित्तों के बल से कार्यकारी मान लिया जाए तो चने से भी गेहूँ की उत्पत्ति होने लगे; क्योंकि गेहूँ स्वयं द्रव्य नहीं है, किन्तु वह पुद्गलद्रव्य की एक पर्याय है; अतएव गेहूँ पर्यायविशिष्ट पुद्गलद्रव्य बाह्यकारणसापेक्ष गेहूँ के अंकुरादि कार्यरूप से परिणत होता है । यदि विशिष्टपर्यायरहित द्रव्य सामान्य से निमित्तों के बल पर गेहूँ के अंकुरादि पर्यायों की उत्पत्ति मान ली जाए तो जो पुद्गल चनारूप हैं, वे पुद्गल होने से, उनसे भी गेहूँरूप पर्याय की उत्पत्ति होने लगेगी; इसलिये जो विविध लौकिक प्रमाण देकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है
SR No.009462
Book TitleNimittopadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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