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प्रथम संस्करण
२६ जनवरी २०१३
मूल्य : ६ रुपये
टाइपसैटिंग त्रिमूर्ति कंप्यूटर्स
ए-४, बापूनगर जयपुर
मुद्रक : श्री प्रिन्टर्स
मालवीयनगर,
जयपुर
विषय
१,०००
प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने वाले दातारों की सूची
१. गुप्तदान, भोपाल
विषयानुक्रमणिका
प्रकाशकीय
• मनोगत
• नक्शों में दशकरण
१. बंधकरण
२. सत्त्वकरण
३-४. उदय- उदीरणाकरण
५. उत्कर्षण
३,००० कुल योग ३,०००
६. अपकर्षण
७. संक्रमण
८. उपशांतकरण
९. निधत्तिकरण
१०. निकाचितकरण
पृष्ठ संख्
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3 Kalashta Ananji Adhyatmik Duskaran Book
(२)
प्रकाशकीय
ब्र. यशपालजी द्वारा लिखित एवं संपादित 'नक्शों में दशकरण' (जीव जीता कर्म हारा) यह नवीनतम कृति प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। कर्म की दश अवस्थाओं को नक्शों के द्वारा ज्ञान कराने का यह प्रयास नया ही प्रयोग है। यह प्रयोग सफल ही होगा; ऐसा हमें विश्वास है।
ट्रस्ट की ओर से प्रतिवर्ष जयपुर में आयोजित होनेवाले पंद्रह दिवसीय आध्यात्मिक शिक्षण-शिविर के अवसर पर करणानुयोग संबंधी प्रारम्भिक ज्ञान कराने हेतु गोम्मटसार के गुणस्थान प्रकरण की कक्षा ब्र. यशपालजी जैन द्वारा ली जाती है। उस समय कक्षा में बैठनेवाले भाइयों को इस विषय को समझने में जो बाधाएँ आती थीं, वे मुख्यतः करणानुयोग की पारिभाषिक शब्दावली से संबंधित रहती हैं।
श्री टोडरमल सिद्धान्त महाविद्यालय के शास्त्री प्रथम वर्ष के अभ्यासक्रम में गुणस्थान- विवेचन की पुस्तक पढ़ायी जाती है। पढ़ाने का कार्य भी प्रारंभ से ही ब्र. यशपालजी ही करते आ रहे हैं। अब विद्यार्थियों को कर्म की दश अवस्थाओं को समझना और समझाना दोनों सुलभ हो जायेंगे। अनेक स्थान पर मुमुक्षु मण्डल के शास्त्र सभा में भी गुणस्थान पढ़ाया जाता है। वहाँ भी कर्म की दश अवस्थाओं का समझाना सहज होगा; ऐसा हमें विश्वास है। ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों का यथार्थ ज्ञान करने के लिए इन दश करणों का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। इस पुस्तक से एक कमी की पूर्ति हो रही है; इसका हमें हार्दिक आनन्द है ।
प्रयोजनभूत सात तत्त्वों के ज्ञान करते समय बंधकरण एवं बंधतत्त्व का ज्ञान करने के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
ब्र. यशपालजी चारों अनुयोगों के संतुलित अध्येता एवं वैराग्य- -रस से भीगे हृदयवाले आत्मार्थी विद्वान् हैं। टोडरमल स्मारक भवन में संचालित होने वाली प्रत्येक गतिविधि में आपका सक्रिय योगदान रहता है। ट्रस्ट के अनुरोध से आप बारम्बार प्रवचनार्थ भी अनेक स्थानों पर जाते रहते हैं।
आपने गोम्मटसार जीवकाण्ड की टोडरमलजी रचित (सम्यग्ज्ञान- चन्द्रिका) टीका का सम्पादन का कार्य अत्यन्त श्रम एवं एकाग्रतापूर्वक किया है तथा इस संपादन कार्य से प्राप्त अनुभव का भरपूर उपयोग करते हुए प्रस्तुत कृति तैयार की है; अतः ट्रस्ट आपका हार्दिक आभारी है।
नक्शों को तैयार करने का कष्टसाध्य कार्य श्री कैलाशचन्दजी शर्मा ने किया है। अतः उन्हें और दानदातारों को भी संस्था धन्यवाद देती है।
इस पुस्तक की प्रकाशन व्यवस्था में साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, अतः वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तक आप सभी आत्मार्थियों को कल्याणकारी हो ह्न इसी भावना के साथ ।
ह्र डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल महामंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट