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निर्मोह है।
निष्काम है निष्क्रोध है निर्मान है निर्द्वन्द्व है निर्दण्ड है निर्ग्रन्थ है निर्दोष है ॥ निर्मूढ है नीराग है आलोक है चिल्लोक है। जिसमें झलकते लोक सब वह आतमा ही लोक है ॥
निज आतमा ही लोक है निज आतमा ही सार है । आनन्दजननी भावना का एक ही आधार है ॥ यह जानना पहिचानना ही भावना का सार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार
है ॥
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