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६. अशुचिभावना
जिस देह को निज जानकर नित रम रहा जिस देह में। जिस देह को निज मानकर रच पच रहा जिस देह में ॥ जिस देह में अनुराग है एकत्व है जिस देह में। क्षण एक भी सोचा कभी क्या क्या भरा उस देह में॥
क्या - क्या भरा उस देह में अनुराग है जिस देह में। उस देह का क्या रूप है आतम रहे जिस देह में ॥ मलिन मल पल रुधिर कीकस वसा का आवास है । जड़रूप है तन किन्तु इसमें चेतना का वास है ॥
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