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२४. श्री वीरवन्दना हे पाणिपात्री वीर जिन जग को बताया आपने । जगजाल में अबतक फंसाया पुण्य एवं पाप ने ॥ पुण्य एवं पाप से है पार मग सुख - शान्ति का । यह धरम का है मरम यह विस्फोट आतम क्रान्ति का ॥
पुण्य-पाप से पार, निज आतम का धरम है। महिमा अपरंपार, परम अहिंसा है यही ॥
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