________________
१०
गुणस्थान- प्रकरण तत्प्रायोग्य संख्यात आवलियों से एक उश्वास - निःश्वास निष्पन्न होता है।
सात उश्वासों से एक स्तोक संज्ञिक काल निष्पन्न होता है। सात स्तोकों से एक लव नाम का काल निष्पन्न होता है। साढ़े अड़तीस लवों से एक नाली नाम का काल निष्पन्न होता है। दो नालिकाओं से एक मुहूर्त होता है।
गाथार्थ – उन तीन हजार सात सौ तेहत्तर (३७७३) उच्छ्वासों का एक मुहूर्त कहा जाता है ॥ १० ॥
विद्वानों ने एक मुहूर्त में पाँच हजार एक सौ दश (५११०) निमेष गिने हैं ।। ११ ।।
तीस मुहूर्ती का एक दिन अर्थात् अहोरात्र होता है।
मुहूर्तों के नाम इस प्रकार हैं
१. रौद्र, २. श्वेत, ३. मैत्र, ४. सारभट, ५. दैत्य, ६. वैरोचन, ७. वैश्वदेव, ८. अभिजित, ९. रोहण, १०. बल, ११. विजय, १२. नैऋत्य, १३. वारुण, १४. अर्यमन् और १५ भाग्य - ये पन्द्रह मुहूर्त दिन में होते हैं । । १२-१३ ।।
१. सावित्र, २. धुर्य, ३. दात्रक, ४ यम, ५ वायु, ६. हुताशन, ७. भानु, ८. वैजयन्त, ९. सिद्धार्थ, १०. सिद्धसेन, ११. विक्षोभ, १२. योग्य, १३. पुष्पदन्त, १४. सुगन्धर्व और १५ अरुण । ये पन्द्रह मुहूर्त रात्रि में होते हैं, ऐसा माना गया है ।। १४-१५ ।।
|
रात्रि और दिन का समय तथा मुहूर्त समान कहे गये हैं। हाँ, कभी दिन को छह मुहूर्त जाते हैं और कभी रात्रि को छह मुहूर्त जाते हैं ।। १६ ।।
विशेषार्थ - समान दिन और रात्रि की अपेक्षा तो पन्द्रह मुहूर्त का दिन और इतने ही मुहूर्तों की एक रात्रि होती है । किन्तु सूर्य के उत्तरायणकाल में अठारह मुहूर्त का दिन और बारह मुहूर्त की रात्रि हो जाती है। तथा सूर्य के दक्षिणायनकाल में बारह मुहूर्त का दिन और अठारह मुहूर्त की रात्रि हो जाती है। इसलिए श्लोक में कहा है कि छह
6
षट्खण्डागम सूत्र - १
मुहूर्त कभी दिन को और कभी रात्रि को प्राप्त होते हैं ।
अर्थात् दिन के तीन और रात्रि के तीन, इसप्रकार छह मुहूर्त कभी दिन से रात्रि में और कभी रात्रि से दिन की गिनती में आते जाते रहते हैं।
११
टीका - पन्द्रह दिनों का एक पक्ष होता है।
दिनों के नाम इसप्रकार है
गाथार्थ - नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा, इसप्रकार क्रम तिथियाँ होती हैं । इनके देवता क्रम से चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, आकाश और धर्म होते हैं ।। १७ ।।
विशेषार्थ - नन्दा आदि तिथियों के नाम प्रतिपदा से प्रारंभ करना चाहिए, अर्थात् प्रतिपदा का नाम नन्दातिथि है। द्वितीय का नाम भद्रातिथि है। तृतीया का नाम जयातिथि है। चतुर्थी का नाम रिक्तातिथि है। पंचमी का नाम पूर्णातिथि है । पुनः षष्ठी का नाम नन्दातिथि है, इत्यादि ।
इसप्रकार से प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी का नाम नन्दातिथि है। द्वितीया सप्तमी और द्वादशी का नाम भद्रातिथि है । तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी का नाम जयातिथि है । चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी का नाम रिक्तातिथि है । पंचमी, दशमी तथा पूर्णिमा का नाम पूर्णातिथि है। इसी क्रम से इनके देवता भी समझ लेना चाहिए। टीका - दो पक्षों का एक मास होता है।
वे मास श्रावण आदिक के नाम से प्रसिद्ध हैं। बारह मास का एक वर्ष होता है। पाँच वर्षों का एक युग होता है।
इसप्रकार ऊपर ऊपर भी कल्प उत्पन्न होने तक कहते जाना चाहिए। यह सब काल कहलाता है।
५. शंका - यह काल किसका है, अर्थात् काल का स्वामी कौन है ? जीव और पुद्गलों का, अर्थात् ये दोनों काल के
समाधान -