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अप्रमत्तविरत
गुणस्थान-प्रकरण प्रमत्तविरत जो (तीन कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक) वीतराग परिणाम, सम्यक्त्व और सकल व्रतों से सहित हो; किन्तु संज्वलन कषाय और नौ नोकषाय के तीव्र उदय निमित्त, प्रमाद सहित हो; उसे प्रमत्तविरत गुणस्थान कहते हैं।
जो महाव्रती संपूर्ण (२८) मूलगुण और शील के भेदों से युक्त होता हुआ भी व्यक्त एवं अव्यक्त दोनों प्रकार के प्रमादों को करता है वह प्रमत्तसंयत गुणस्थानवाला है। अतएव वह चित्रल आचरणवाला माना गया है। ___इस छठे गुणस्थानवर्ती मुनि का आचरण संज्वलन कषाय के तीव्र उदय से युक्त रहने के कारण चित्रल-चितकबरा - जहाँ पर दूसरे रंग का भी सद्भाव पाया जाय, ऐसा हुआ करता है। और यह व्यक्त अव्यक्त दोनों ही प्रकार के प्रमादों से युक्त रहा करता है। (७ अप्रमत्तविरत में)
अप्रमत्तविरत से
अप्रमत्तविरत संज्वलन कषाय तथा नौ नोकषायों के मंद उदय के समय में अर्थात् निमित्त से प्रमाद रहित होनेवाली वीतरागदशा को अप्रमत्तसंयत गुणस्थान कहते हैं।
जिनके व्यक्त और अव्यक्त सभी प्रकार के प्रमाद नष्ट हो गये हैं; जो व्रत, गुण और शीलों से मंडित हैं, जो निरंतर आत्मा और शरीर के भेदविज्ञान से युक्त हैं, जो उपशम और क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ नहीं हुए हैं और जो ध्यान में लवलीन हैं; उन्हें अप्रमत्तसंयत कहते हैं।
अधःप्रवृत्तकरण के काल में से ऊपर के समयवर्ती जीवों के परिणाम नीचे के समयवर्ती जीवों के परिणामों के सदृश - अर्थात् संख्या और विशुद्धि की अपेक्षा समान - होते हैं, इसलिये प्रथम करण को अध:प्रवत्तकरण कहा है।
प्रमत्तविरत में आगमन
प्रमत्तविरत से गमन
८ उपशमकअपूर्वकरण से)
| ८. अपूर्वकरण में
उपशमक पक्षपक अप्रमत्तविरत से गमन
अप्रमत्तविरत में आगमन
१५ देशविरत में
(४ अविरत सम्यक्त्व में
६ प्रमत्तविरत से
प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टि
-यदि मरण हो जाये तो
(३ मिश्र में
नीचे से किसी भी गुणस्थान से प्रमत्तविरत में प्रमत्तविरत गुणस्थान शुभोपयोगमय है। शुद्धोपयोगरूप अप्रमत्त गुणस्थान से नीचे गिरते समय ही प्रमत्तविरत गुणस्थान की प्राप्ति का नियम है; अन्य किसी भी गुणस्थान से प्रमत्तविरत आगमन नहीं होता। गुणस्थान की प्राप्ति नहीं होती।
(५ देशविरत से
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नीचे के चार गुणस्थानों से अप्रमत्त में
आगमन होता है।
|६ प्रमत्तविरत में
(३ सासादन सम्यक्त्व में
EEK४ अविरत सम्यक्त्व से)
अविरत सम्यक्त्व में
१ मिथ्यात्म में
१ मिथ्यात्म से)