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८ से १२ व १४
अयोगकेवली गुणस्थान
चारों क्षपक, सूत्र - अपूर्वकरण आदि चारों क्षपक और अयोगिकेवली कितने काल तक होते हैं?
नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं ॥ २६ ॥ वह इसप्रकार है - सात आठ जन अथवा अधिक से अधिक एक सौ आठ, अप्रमत्तसंयत जीव, अप्रमत्तकाल के क्षीण हो जाने पर, अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती क्षपक हुए। वहाँ पर अन्तर्मुहूर्त काल रह करके अनिवृत्तिकरण गुणस्थान को प्राप्त हुए।
इसीप्रकार से अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ और अयोगिकेवली, इन चारों क्षपकों के जघन्यकाल की प्ररूपणा जान करके कहना चाहिए।
सूत्र - चारों क्षपकों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥२७॥ वह इसप्रकार से है - सात आठ जन अथवा बहुत से अप्रमत्तसंयत अपूर्वकरण गुणस्थानी क्षपक हुए। वे वहाँ पर अन्तर्मुहूर्त रह करके अनिवृत्तिकरण गुणस्थानी हो गये। उसी ही समय में अन्य अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण क्षपक हुए । इसप्रकार पुनः पुनः संख्यातवार आरोहणक्रिया के करने पर नाना जीवों का आश्रय करके अपूर्वकरण क्षपक का उत्कृष्ट काल होता है।
इसीप्रकार से चारों क्षपकों का काल जान करके कहना चाहिए। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा चारों क्षपकों का जघन्य अन्तर्मुहूर्त है ॥ २८ ॥
वह इसप्रकार है - एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण गुणस्थानी क्षपक हुआ और अन्तर्मुहूर्त रह करके अनिवृत्तिकरण क्षपक हुआ । इसीप्रकार से चारों क्षपकों के जघन्यकाल की प्ररूपणा करना चाहिए। सूत्र - एक जीव की अपेक्षा चारों क्षपकों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥२९॥
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षट्खण्डागम सूत्र २६, २७, २८, २९
एक अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरण क्षपक हुआ। वहाँ पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक रह करके अनिवृत्तिकरण गुणस्थान को प्राप्त हुआ। यह एक जीव को आश्रय करके अपूर्वकरण का उत्कृष्ट काल हुआ। इसीप्रकार से चारों क्षपकों का काल जान करके कहना चाहिए। यहाँ पर जघन्य और उत्कृष्ट, ये दोनों ही काल सदृश हैं; क्योंकि, अपूर्वकरण आदि के परिणामों की अनुकृष्टि का अभाव होता है।
विशेषार्थ - यहाँ पर अपूर्वकरण आदि के परिणामों की अनुकृष्टि के अभाव कहने का अभिप्राय इसप्रकार हैविवक्षित समय में विद्यमान जीव के अधस्तन समयवर्ती जीवों के परिणामों के साथ सादृशता होने को अनुकृष्टि कहते हैं । अधः प्रवृत्तिकरण में भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणामों में सदृशता पाई जाती है, इसलिए वहाँ पर अनुकृष्टि रचना बतलाई गई है।
किन्तु अपूर्वकरण आदि में उपरितन समयवर्ती जीवों के परिणामों की अधः स्तन समयवर्ती जीवों के परिणामों के साथ सदृशता नहीं पाई जाती है, इसलिए अपूर्वकरण आदि में अनुकृष्टि रचना का अभाव होता है। इसीकारण अपूर्वकरण आदि गुणस्थानों के जघन्यकाल और उत्कृष्ट काल सदृश बतलाये गये हैं।
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सयोगकेवली गुणस्थान
सूत्र - सयोगिकेवली जिन कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं॥ ३० ॥ चूँकि, तीनों ही कालों में एक भी समय सयोगिकेवली भगवान् से विरहित नहीं है, इसलिए सर्व कालपना बन जाता है।
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सूत्र एक जीव की अपेक्षा सयोगिकेवली का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३१ ॥