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देशविरत गुणस्थान
सूत्र - संयतासंयत जीव कितने काल तक होते हैं?
नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १६ ॥ इस सूत्र का अर्थ सुगम है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान
के काल में उसका प्ररूपण किया जा चुका है। एक जीव की अपेक्षा संयतासंयत का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥१७॥
वह काल इसप्रकार संभव है -
देशविरत में आगमन - जिसने पहले भी बहुत बार संयमासंयम गुणस्थान में परिवर्तन किया है ऐसा कोई एक मोहकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता रखनेवाला १. मिथ्यादृष्टि अथवा २. असंयतसम्यग्दृष्टि अथवा ३. प्रमत्तसंयत जीव पुनः परिणामों के निमित्त से संयमासंयम गुणस्थान को प्राप्त हुआ । वहाँ पर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त काल रह करके वह यदि प्रमत्तसंयतचर है, अर्थात्
देशविरत से गमन - प्रमत्तसंयतगुणस्थान से संयतासंयत गुणस्थान को प्राप्त हुआ है, तो १. मिथ्यात्व को अथवा २. सम्यग्मिथ्यात्व को अथवा ३. असंयतसम्यक्त्व को प्राप्त हुआ। अथवा ४. यदि वे पश्चात्कृत मिथ्यात्व या पश्चाकृत असंयमसम्यक्त्ववाले हैं, अर्थात् संयतासंयत होने के पूर्व मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि रहे हैं, तो ५. अप्रमत्तभाव के साथ संयम को प्राप्त हुए, क्योंकि यदि ऐसा न माना जाय तो संयतासंयत गुणस्थान का जघन्यकाल नहीं बन सकता।
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षट्खण्डागम सूत्र १६, १७, १८
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४४. शंका – सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संयमासंयम गुणस्थान को किसलिए नहीं प्राप्त कराया गया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव के देशविरतिरूप पर्याय से परिणमन की शक्ति का होना असंभव है। कहा भी है
गाथार्थ - सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव न तो मरता है, न संयम को प्राप्त होता है, न देशसंयम को भी प्राप्त होता है। तथा उसके मरणान्तिकसमुद्घात भी नहीं होता है ।। ३३ ।।
सूत्र - संयतासंयत जीव का उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है ॥ १८ ॥
वह काल इस प्रकार संभव है - मोहकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता रखनेवाला एक तिर्यंच अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव, संज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक ऐसे संमूर्च्छन तिर्यंच मच्छ, कच्छप, मेंडकादिकों उत्पन्न हुआ, सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल द्वारा सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्तप को प्राप्त हुआ ।
(१) पुनः विश्राम लेता हुआ। (२) विशुद्ध हो करके । (३) संयमासंयम को प्राप्त हुआ। वहाँ पर पूर्वकोटि काल तक संयमासंयम को पालन करके मरा और सौधर्मकल्प को आदि लेकर आरण अच्युतान्त कल्पों के देवों में उत्पन्न हुआ। तब संयमासंयम नष्ट हो गया।
इसप्रकार आदि के तीन अन्तर्मुहूर्तों से कम पूर्वकोटिप्रमाण संयमासंयम का काल होता है।