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गुणस्थान- प्रकरण
समाधान - नहीं, क्योंकि विशुद्धि के संपूर्णकाल तक अपने गुणस्थान में रह करके और संक्लेश को धारण करके मिथ्यात्व को जानेवाले जीव के सम्यग्मिथ्यात्वसंबंधी काल के बहुत्व का प्रसंग हो जायगा। इसका कारण यह है कि एक भी विशुद्धि के काल से संक्लेश और विशुद्धि, इन दोनों का ही काल, दोनों के अन्तराल में स्थित प्रतिभाग काल सहित निश्चय से संख्यातगुणा होता है, इसप्रकार के अभिप्राय से वह वर्धमान विशुद्धिवाला सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व को नहीं प्राप्त कराया गया।
अथवा संक्लेश को प्राप्त होनेवाला वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त हुआ और वहाँ पर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल रह करके अविनष्टसंक्लेशी हुआ ही मिथ्यात्व को चला गया। यहाँ पर भी कारण पूर्व के समान ही (स्वभाव) कहना चाहिए । इस तरह दो प्रकारों से सम्यग्मिथ्यात्व के जघन्यकाल की प्ररूपणा समाप्त हुई।
सूत्र एक जीव की अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव का उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १२ ॥
वह इसप्रकार है- एक विशुद्धि को प्राप्त होनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। वहाँ पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रहकर और संक्लेशयुक्त हो करके मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। पहले बतलाये गए इसी गुणस्थान के जघन्यकाल से यह उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है; क्योंकि वह सर्वोत्कृष्ट त्रिकाल के समूहात्मक है।
अथवा संक्लेश को प्राप्त होनेवाला वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। वहाँ पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रह करके असंयतसम्यग्दृष्टि हो गया। यहाँ पर भी कारण पूर्व के समान (स्वभाव) ही कहना चाहिए।
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अविरतसम्यक्त्व
सूत्र - असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं? नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १३ ॥ इसका कारण यह है कि अतीत, अनागत और वर्तमान - इन तीनों ही कालों में असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों का व्युच्छेद नहीं है। ३६. शंका - त्रिकाल में भी असंयतसम्यग्दृष्टि राशि का व्युच्छेद क्यों नहीं होता? समाधान
ऐसा स्वभाव ही है।
३७. शंका – असंयतसम्यग्दृष्टि राशि का ऐसा स्वभाव है, यह कैसे जाना ?
समाधान- सूत्र - पठित 'सर्वाद्धा' अर्थात् सर्वकाल रहते हैं, इस वचन से जाना ।
३८. शका - विवादस्थ पक्ष ही हेतुपने को कैसे प्राप्त हो जायेगा ? समाधान - नहीं; क्योंकि, प्रत्येक जिनवचन साध्य-साधनरूप उभय पक्ष की शक्ति से युक्त होता है, इसलिए वह एक ही जिनवचन विवक्षित पक्ष के साधन करन में निश्चय से समर्थ है, इसमें उभय पक्ष के भी कोई विरोध नहीं आता ।
३९. शंका - 'दिवाकर स्वतः उदित होता है' इस वचन के समान क्रियाविशेषण होन से 'सव्वद्धं' ऐसा पाठ होना चाहिए? समाधान - नहीं; क्योंकि, उस प्रकार की विवक्षा का अभाव है। ४०. शंका - तो यहाँ पर किस प्रकार की विवक्षा है? समाधान वह विवक्षा इसप्रकार की है- सर्वकाल जिन जीवों होता है, वे सर्वाद्धा कहलाते हैं अर्थात् 'सर्वकालसम्बन्धी 'जीव' यह 'सर्वाद्धा' पद का अर्थ है।