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ब्र. यशपालजी जैन का साहित्यिक कार्य स्वतंत्र कृतियाँ १. गुणस्थान विवेचन २. जिनधर्म प्रवेशिका ३. मोक्षमार्ग की पूर्णता ४. जिनेन्द्र पूजेचे स्वरूप (मराठी) ५. जिनधर्म-विवेचन अनुवाद एवं टीकाएँ ६. क्षत्रचूड़ामणि
७. योगसार प्राभृत अनुवाद (मराठी) ८. योगसार
९. परमात्मप्रकाश सम्पादित हिन्दी साहित्य १०. सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाग-१ ११. सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाग-३ १२. अध्यात्म बारहखड़ी १३. पंचपरमेष्ठी १४. योगसार प्राभृत-शतक १५. तत्त्ववेत्ता : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल १६. चिन्तन की गहराईयाँ १७. भावदीपिका १८. बिखरे मोती
१९. दृष्टि का विषय २०. णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन २१. रीति-नीति
२२. मैं स्वयं भगवान हूँ २३. जिनेन्द्र अष्टक २४. गोली का जवाब गाली से भी नहीं २५. बिन्दू में सिन्धु २५. चौदह गुणस्थान इसके अलावा ब्र. यशपालजी ने आचार्य कुन्दकुन्द विरचित पंचपरमागम एवं मोक्षमार्गप्रकाशक के कन्नड़ भाषा के अनुवाद में बहुमूल्य सहयोग दिया है।
दो शब्द श्री जिन तारण-तरण स्वामी अध्यात्म जगत के महान तत्त्ववेत्ता, अध्यात्म रसिक, संगीतज्ञ महापुरुष ईसा की १५वीं शताब्दी में मध्य भारत में हुए हैं। उन्होंने उस समय की जनसामान्य की भाषा में १४ ग्रन्थों की रचना की है।
ज्ञानसमुच्चय सार सारमत का ग्रन्थ है। इन १४ ग्रन्थों में से ९ ग्रन्थों की हिन्दी में टीका जैन धर्मभूषण ब्र. शीतलप्रसादजी ने बहुत ही विद्वता से की है। सन् १९३२ तक जिन तारण तरण स्वामी की भाषा को तत्कालीन विद्वान समझने में असमर्थ थे - इस कारण ब्र.शीतलप्रसादजी ने तारण-तरण समाज का महान उपकार किया है।
प्रस्तुत संपादन में सारमत का ग्रन्थ ज्ञानसमुच्चयसार की गाथाओं पर विशेष अर्थ ब्र. यशपालजी ने लिखने का प्रयास किया है। जैनागम में गुणस्थानों का कथन मोक्षमार्गानुसार किया गया है। श्री जिन तारण तरण स्वामी का अध्ययन चारों अनुयोगों का था; किन्तु मुख्यता द्रव्यानुयोग की ही है।
ब्र. यशपालजी ने ब्र. शीतलप्रसादजी की टीका के आधार पर ही प्रस्तुत रचना की है, अपनी ओर से विषय को सरल बनाने हेतु सुंदर प्रयत्न किया है। उनका प्रिय विषय करणानुयोग है । गुणस्थान व्यवस्था समझने में इससे विशेष सहायता मिलेगी और पाठक सुगमता से इसे हृदयंगम कर सकेंगे।
इस संपादन कार्य को प्रकाशित करने का कार्य पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर द्वारा किया गया है। यह उत्तम कार्य है।
आशा है पाठकगण इसका अध्ययन कर लाभ उठावेंगे - तारण-तरण समाज इस महती कार्य हेतु ब्र. यशपालजी का आभारी रहेगा। __पुनश्चः श्री जिन तारण-तरण स्वामी का जीवन चरित्र, सिद्धान्त शास्त्री पं. फूलचन्दजी द्वारा लिखित है, वह सही एवं प्रामाणिक है। समैया सदन सागर दि.२-९-२०१२
भायजी कपूरचन्द समैया अध्यक्ष - तारण-तरण दि. जैन विद्वत्त परिषद्
कीमत कम करने वाले दातारों की सूची १. श्री जगनमलजी सेठी, जयपुर २. श्रीमती मीना जैन, जयपुर
१,०००.०० ३. श्री महिला मण्डल टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर १,०००.०० ४. श्री हीरालालजी सोगानी, साकरोंदा
१,०००.०० कुल राशि ४,१००.००
आभारी
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