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________________ चौदह गुणस्थान कषाय का उदय आ गया हो तो वह सम्यग्दर्शन के शिखर से गिरता है और मिथ्यात्व की भूमि पर आ रहा है, बीच के परिणामों को सासादन गुणस्थान कहते हैं । न वहाँ सम्यक्त्व है न वहाँ मिथ्यात्व है। बीच में कैसे भाव होते हैं, सो यहाँ बताया है । अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से या तो किसी इन्द्रिय विषय की तीव्र इच्छा में या किसी अभिमान में या किसी विरोधी के साथ द्वेष भाव में या किसी विषय प्राप्ति के लिये मायाचार में फँस जाता है। खोटे संसार के मार्ग मोह में अंधा हो जाता है या उसके भीतर संशय पैदा हो जाता है कि आत्मा है या नहीं, या अनात्मा ही आत्मा है क्या, या आत्मा का स्वरूप जैन सिद्धान्त कहता है वह ठीक है या वेदांतादि कहता है वह ठीक है। यद्यपि न तो विपरीत मिथ्यात्व न संशय मिथ्यात्व ही होता है; किन्तु विपरीत या संशय मिथ्यात्व की तरफ गिरता हुआ कोई न कहने योग्य भाव होता है। १८ इसका काल अधिक से अधिक छह आवली व कम-से-कम एक समय होता है। यह नियम से मिथ्यात्व गुणस्थान में गिर पड़ता है । गोम्मटसार में कहा है - “प्रथमोपशम सम्यक्त्व या द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के काल में जब एक समय से लेकर छह आवली तक काल बाकी रहता है, तब अनन्तानुबन्धी चार कषायों में से किसी एक का उदय आने पर सम्यग्दर्शन से गिर जाता है। सम्यक्त्व के रत्नमय पर्वत के शिखर से गिरकर मिथ्यात्व की भूमि में आ रहा है, बीच के परिणामों को सासादन गुणस्थान कहते हैं। आँख की टिमकार से भी कम काल एक आवली में लगता है। समय बहुत ही सूक्ष्मकाल है। एक आँख की टिमकार में असंख्यात समय हो जाते हैं। " संसय रूव सहावं, मिच्छा कुन्यान न्यान जानंतो । (१०) व्रत संजमंच धरतो, सासादन गुनठान व्रत संजुत्तो ।।६६७ ।। ( 11 ) सासादन गुणस्थान १९ अन्वयार्थ - (संसय रूव सहावं ) संशय का ऐसा स्वभाव है कि उसके उत्पन्न होने पर (मिच्छा कुन्यान न्यान जानंतो) ज्ञान को मिथ्या / कुज्ञान रूप जानो ( व्रत संजमं च धरतो) व्रत एवं संयम का धारी व्रतों से संयुक्त होने पर भी (सासादन गुनठान व्रत संजुत्तो) सासादन गुणस्थान में आ जाता है। भावार्थ - व्रत एवं संयम के धारी जीव को ज्ञान - स्वभाव में संशय उत्पन्न हो जाता है। सासादन गुणस्थान में अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय हो जाता है, जिससे उस जीव के यद्यपि व्रत एवं संयम का संयोग देखा जाता है; तथापि उसका ज्ञान मिथ्या एवं कुज्ञानरूप जानो । अनन्तानुबन्धी कषाय, सम्यक्त्व एवं चारित्र दोनों की घातक है। मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यक्दृष्टि दोनों के विपरीतार्थवेदन में बहुत अन्तर है, क्योंकि मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में अतत्त्वार्थ श्रद्धान व्यक्त एवं सासादन गुणस्थान में अव्यक्त हुआ करता है। ... मिश्र गुणस्थान मिस्र मिश्र सहावं, षट दर्सन सुभाव संजुत्तो । (११) अप्पा पर जानतो, जिनोक्त दंसन न्यान चरन बूझंतो । ६६८ ।। अन्वयार्थ - (मिस्र मिश्र सहावं ) मिश्र गुणस्थान का सम्यक्त्वमिथ्यात्व का मिला हुआ स्वभाव है (षट् दर्सन सुभाव संजुत्तो ) ऐसा मिश्र गुणस्थानधारी छहों दर्शनों के स्वभावों को जानता है (जिनोक्त दंसन न्यान चरन बूझंतो) तथा जैन शास्त्र में कहे हुए जैन दर्शन के ज्ञान को भी रखता है (अप्पा परु जानंतो) आत्मा और पर को भी जानता है, परन्तु उसका श्रद्धान मिला हुआ होता है।
SR No.009448
Book TitleChaudaha Gunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages27
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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