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_ बिन्दु में सिन्धु
१. जैनदर्शन का मार्ग पूर्ण स्वाधीनता का मार्ग है। २. आज का जागृत समाज निर्माण को चुनेगा विध्वंस को नहीं।
अशान्त चित्त में लिया गया कोई भी निर्णय आत्मा के हित के लिए तो होता ही नहीं है, समाज के लिए भी
उपयोगी नहीं होता है। ४. गोली का जवाब गोली से देने की बात तो बहुत दूर, हमें
तो गोली का जवाब गाली से भी नहीं देना है।
तत्त्व का प्रचार लड़कर नहीं किया जा सकता। ६. तत्त्वदृष्टि की एकरूपता ही वास्तविक वात्सल्य उत्पन्न
करती है। ७. विरोध प्रचार की कुंजी है।
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