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२६७. होता वही है, जो होना होता है। २६८. क्रमबद्धपर्याय में वस्तु की अनन्त स्वतन्त्रता की घोषणा है। २६६. जो होना है सो निश्चित है केवलज्ञानी ने गाया है। ३००. क्रमबद्धपर्याय की सहज स्वीकृति में जीत ही जीत है,
हार है ही नहीं। ३०१. कुछ करो नहीं, बस होने दो; जो हो रहा है, बस उसे
होने दो। ३०२. क्रमबद्धपर्याय पुरुषार्थनाशक नहीं; अपितु पुरुषार्थ प्रेरक है। ३०३. वैराग्य तो अन्तर की योग्यता पकने पर काललब्धि आने
पर होता है। ३०४. वस्तु के अंशों की गहन पकड़ तो नयज्ञान से ही होती है। ३०५. नय जैनदर्शन की अलौकिक उपलब्धि है। ३०६. सम्यक् एकान्त नय है और मिथ्या एकान्त नयाभास है।
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