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________________ २६४. ध्रुवधाम आत्मा से विमुख पर्याय ही वस्तुतः संसार है । २६५. संसार बिन्दु है तो लोक सिन्धु । २६६. जिनागम का समस्त उपदेश भव के अभाव के लिए है । २६७. दुःख का ही दूसरा नाम संसार है। २६८. संयोगाधीन दृष्टि ही संसार का कारण है । २६६. संयोग हैं सर्वत्र पर साथी नहीं संसार में । २७०. भीड़ तो मात्र संयोग की सूचक है, साथ की नहीं । २७१. एकत्व ही सत्य है, शिव है, सुन्दर है । २७२. आत्मा का अकेलापन अभिशाप नहीं, वरदान है । २७३. महानता तो एकत्व में ही है, अकेलेपन में ही है। २७४. एकत्व ही सनातन सत्य है, साथ की कल्पना मात्र कल्पना ही है । २७५. आस्रव भावना में विभाव की विपरीतता का चिन्तन मुख्य होता है। ३२
SR No.009447
Book TitleBindu me Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla, Yashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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