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१७०. अमर है ध्रुव आत्मा वह मृत्यु को कैसे वरे ? १७१. संयोग क्षणभंगुर सभी पर आतमा ध्रुवधाम है। १७२. जो खोजता पर की शरण वह आतमा बहिरातमा। १७३. संसार संकटमय है परन्तु आतमा सुखधाम है। १७४. पहिचानते निजतत्त्व जो वे ही विवेकी आतमा। १७५. प्रिय ध्येय निश्चय ज्ञेय केवल श्रेय निज शुद्धात्मा। १७६. जिसमें झलकते लोक सब वह आतमा ही लोक है। १७७. है समयसार बस एक सार है समयसार बिन सब असार। १७८. संतापहरण सुखकरण सार शुद्धात्मस्वरूपी समयसार। १७६. मैं हूँ स्वभाव से समयसार परिणति हो जावे समयसार। १८०. निज अंतर्वास सुवासित हो शून्यान्तर पर की माया से। १८१. निज परिणति का सत्यार्थ भान शिवपद दाता जो तत्त्वज्ञान। १८२. अपने में ही समा जाना भेदविज्ञान का फल है।