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________________ 77 आत्मा ही परमात्मा है इससे यह बात सहज सिद्ध होती है कि होने से भी अधिक महत्व जानकारी होने का है, ज्ञान होने का है । होने से क्या होता है ? होने को तो यह आत्मा अनादि से ज्ञानानन्द स्वभावी भगवान आत्मा ही है, पर इस बात की जानकारी न होने से, ज्ञान न होने से ज्ञानानन्द-स्वभावी भगवान होने का कोई लाभ इसे प्राप्त नहीं हो रहा है । होने को तो वह रिक्शा चलानेवाला बालक भी गर्भश्रीमन्त है, जन्म से ही करोड़पति है; पर पता न होने से दो रोटियों की खातिर उसे रिक्शा चलाना पड़ रहा है । यही कारण है कि जिनागम में सम्यग्ज्ञान के गीत दिल खोलकर गाये हैं । कहा गया है कि Code "ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण । इह परमामृत जन्म- जरा - मृतु रोग निवारण ॥ ' इस जगत में ज्ञान के समान अन्य कोई भी पदार्थ सुख देनेवाला नहीं है । यह ज्ञान जन्म, जरा और मृत्यु रूपी रोग को दूर करने के लिए परम- अमृत है, सर्वोत्कृष्ट औषधि है ।" और भी देखिए - "जो पूरब शिव गये जाहिं अरु आगे जैहैं । सो सब महिमा ज्ञानतनी मुनी नाथ कहै हैं ॥ आजतक जितने भी जीव अनन्त सुखी हुए हैं अर्थात् मोक्ष गये हैं या जा रहे हैं अथवा भविष्य में जावेंगे, वह सब ज्ञान का ही प्रताप है ऐसा मुनियों के नाथ जिनेन्द्र भगवान कहते हैं ।" - सम्यग्ज्ञान की तो अनन्त महिमा है ही, पर सम्यग्दर्शन की महिमा जिनागम में उससे भी अधिक बताई गई है, गाई गई है । क्यों और कैसे ? १. पण्डित दौलतराम : छहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ४ 2. पण्डित दौलतराम : छहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ८
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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