SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा ही परमात्मा है विराजमान भगवान के समान स्वयं की भी अष्ट द्रव्य से पूजन करने लगे तो उसे व्यवहार- विहीन ही माना जायगा; वह व्यवहारकुशल नहीं, अपितु व्यवहारमूढ़ ही है । 75 इसीप्रकार यदि कोई व्यक्ति आत्मोपलब्धि के लिए ध्यान भी मन्दिर में विराजमान भगवान का ही करता रहे तो उसे भी विकल्पों की ही उत्पत्ति होती रहेगी, निर्विकल्प आत्मानुभूति कभी नहीं होगी; क्योंकि निर्विकल्प आत्मानुभूति निज भगवान आत्मा के आश्रय से ही होती है । निर्विकल्प आत्मानुभूति के बिना सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की उत्पत्ति भी नहीं होगी । इसप्रकार उसे सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की एकतारूप मोक्षमार्ग का आरम्भ ही नहीं होगा । - जिसप्रकार वह रिक्शावाला वालक रिक्शा चलाते हुए भी करोड़पति है, उसी प्रकार दीन-हीन हालत में होने पर भी हम सभी स्वभाव से ज्ञानानन्द स्वभावी भगवान हैं, कारण परमात्मा हैं यह जानना - मानना उचित ही है । - इस सन्दर्भ में मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि भारत में अभी किसका राज है ? "कांग्रेस का" "क्या कहा, कांग्रेस का ? नहीं भाई ! यह ठीक नहीं है; कांग्रेस तो एक पार्टी है, भारत में राज तो जनता-जनार्दन का है; क्योंकि जनता जिसे चुनती है, वही भारत का शासन चलाता है; अतः राज तो जनता-जनार्दन का ही है ।" उक्त सन्दर्भ में जब हम जनता को जनार्दन (भगवान) कहते हैं तो कोई नहीं कहता कि जनता तो जनता है, वह जनार्दन अर्थात् भगवान कैसे हो सकती है ? पर जब तात्त्विक चर्चा में यह कहा जाता है कि हम सभी भगवान हैं तो हमारे चित्त में अनेक प्रकार की शंकाएँ
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy