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________________ 219 जैनमक्ति और ध्यान तो यह चाहेगा भी नहीं कि आप वही उद्योग लगावें, वही व्यापार करें; पर जैनियों के भगवान सभी को भगवान बनने की ही विधि बताते हैं । ___अरे भाई, भगवान तो भगवान बनने की विधि बताते हैं, पर हम तो उनके बताये मार्ग पर नहीं चल सकते हैं न ? अतः हमारे किस काम की है वह विधि ? हमें तो कुछ ऐसा मार्ग बतावें कि जिस पर हम चल सकें । अरे भाई, भगवान तो यह कहते हैं कि तुम स्वयं भगवान हो और भगवान बन भी सकते हो । इसीलिए वे तुम्हें भगवान बनने की विधि भी बताते हैं, पर तुम कहते हो कि हम इस मार्ग पर चल नहीं सकते। __ ऐसी अनुत्साह की बात क्यों करते हो ? कोई भी समझदार व्यक्ति पाँच लाख के हाथी से यह नहीं कहता कि __एक गिलास पानी लाना, पर पाँच वर्ष की कन्या से कहता है; क्योकि वह ला सकती है, हाथी नहीं ला सकता । जब लोक में भी कोई समझदार व्यक्ति उससे वह काम करने के लिए नहीं कहता, जो उस काम को कर नहीं सकता; अपितु उससे ही कहता है, जो कर सकता है तो क्या भगवान या आचार्यदेव तुमसे भगवान बनने की बात बिना सोचे-समझे कर रहे होंगे? क्या वे इतना भी नहीं समझते कि तुम कर सकते हो या नहीं ? भगवान बनने का कार्य तुम कर तो सकते हो, पर सबसे बड़ी बाधा तुम्हारी यही मान्यता है कि हम तो यह कार्य कर ही नहीं सकते । अतः तुम इस मान्यता को छोड़ दो और उत्साह से बात को समझो । अरे भाई, भगवान तुम्हें भगवान बनने की विधि बता रहे हैं और भगवान बनने की प्रेरणा भी दे रहे हैं - यह हमारा और तुम्हारा महान भाग्य है । चक्रवर्ती की सुन्दरतम कन्या हमारे गले में वरमाला डालने को आवे और हम मुँह फेर लें तो समझ लेना चाहिये कि हमारा भाग्य ही फिर
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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