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आत्मा ही है शरण
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जैना निश्चित रूप से निरन्तर प्रगति कर रहा है । इसके पहले भी हम उसके दो द्विवार्षिक सम्मेलनों में शामिल हो चुके हैं - एक शिकागो में और दूसरा टोरन्टो में । उनकी तुलना में इस सम्मेलन को देखकर यह कहा जा सकता है कि जैना अपने काम में निरन्तर गतिशील है ।।
यहीं पर भाई बलभद्र भी मिले । वे जैनदर्शन के गहरे अध्ययन के लिए श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर में चार माह के लिए आना चाहते
थे । उन्होंने आने की भावना व्यक्त की तो हमने कहा___ "कहते तो हमेशा ही रहते हो, पर आते तो हो नहीं । कोरी बातों में हमारा विश्वास नहीं है । हमारा तो तुम्हें स्थाई आमंत्रण है, जब भी आना चाहो आ सकते हो ।"
दृढ़ निश्चय व्यक्त करते हुए वे बोले - "नहीं, ऐसी बात नहीं है; अबकी बार तो हर हालत में आना ही है।"
हमने कहा, "यदि यह सच है तो आप अवश्य पधारिये । हम आपके अध्ययन, आवास एवं भोजन-पानी आदि की व्यवस्था अपनी ओर से करेंगे; बस आपको तो मात्र आना ही है ।" ___ आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि वे जयपुर आ गये थे और साढ़े चार माह रहकर १५ जनवरी, १९९२ को वापिस गये हैं । वे जैनदर्शन और जिन-अध्यात्म के रहस्यों को जानकर अत्यन्त प्रफुल्लित थे और समय-समय पर अपनी भावना भी व्यक्त करते रहते थे ।
इस साढ़े चार माह में यहाँ बालबोध पाठमाला भाग १-२-३, वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १-२-३, तत्वज्ञान पाठमाला भाग १-२, द्रव्यसंग्रह, जैनसिद्धान्त प्रवेशिका, क्रमबद्धपर्याय, सर्वार्थसिद्धि एवं समयसार का गहरा अध्ययन वे कर चुके हैं । जे. एल. जैनी एवं ए. चक्रवर्ती दोनों के ही समयसार के अंग्रेजी अनुवादों का अध्ययन किया है । अतः समयसार