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आत्मा ही है शरण
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के थोड़ा-बहुत पाप का उदय देखने में आता ही है । पाप के उदय में प्रतिकूलताएँ भोगते हम सभी को सदा देखते ही हैं । ___जाने दो णमोकार महामंत्र बोलने वालों को, पर णमोकार महामंत्र में जिन्हें नमस्कार किया गया है, उन्हें भी तो पापोदय देखने में आता है । हमारे वीतरागी सन्तों पर जो उपसर्ग होते हैं, वे सभी पापोदय के ही तो परिणाम हैं । जब उनके ही पापों का नाश नहीं हुआ तो उनका नाम लेने से हमारे पापों का नाश कैसे होगा ? ___यह एक ऐसा प्रश्न है जो प्रत्येक विचारक के हृदय को आंदोलित करता है । इस पर गंभीरता से विचार करते हैं तो यही प्रतीत होता है कि जो व्यक्ति जिस समय इस महामंत्र का भावपूर्वक, समझपूर्वक स्मरण करता है, उसके हृदय में उस समय कोई पापभाव उत्पन्न ही नहीं होता, यही सब पापों का नाश होना है ।
प्रश्न :- यदि 'उस समय पापभाव उत्पन्न नहीं होते' मात्र इतना ही आशय है तो फिर सब पापों के नाश की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर : - पाप अनेक प्रकार के हैं, हिंसा झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह। ये सभी पापभाव णमोकार मंत्र के स्मरण के काल में उत्पन्न नहीं होते - इसकारण ही 'सब' शब्द का प्रयोग है । यहाँ 'सब' शब्द का अर्थ वर्तमान में उत्पन्न होनेवाले हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह के परिणाम ही हैं । इसमें भूतकाल में किए गये पापों से कोई तात्पर्य नहीं है। यदि भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी द्रव्य-पाप एवं भाव-पाप मात्र णमोकार मंत्र के बोलने मात्र से नष्ट हो जाते होते तो फिर आत्मध्यानरूप तप की क्या आवश्यकता थी, उपशम श्रेणी-क्षपकश्रेणी मांडने की क्या आवश्यकता थी ? सभी कर्मों का नाश णमोकार मंत्र के बोलने से ही हो जाता ।
इसीप्रकार यदि णमोकार मंत्र बोलने मात्र से सभी पाप नाश को प्राप्त हो जाते होते तो फिर कोई पाप करने से डरता ही क्यों ? दिनभर जी-भरकर