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आत्मा ही है शरण
हम तो अपने प्रवचनों में विशुद्ध आध्यात्मिक चर्चा ही करते हैं, संस्था का परिचय तक नहीं देते, पर संस्था का काम किसी से छिपा थोड़े ही रहता है। अतः काम देखकर लोग सहज ही सहयोग करते हैं । __इस अवसर पर हमने २६ दिसम्बर, १९९० से २ जनवरी, १९९१ तक पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर में होनेवाले विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारने का सबको हार्दिक आमंत्रण दिया । भगवानजीभाई ने भी पंचकल्याणक में शामिल होने के लिए सभी को प्रेरित किया । परिणामस्वरूप पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में उनके परिवार और संबंधियों में से २८ व्यक्ति पधारे थे और उन्होंने जन्मकल्याणक के अवसर पर पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के निर्माण कार्य में तीन लाख रुपये देने की घोषणा भी की ।
__लन्दन में तीस हजार जैन रहते हैं, जिनमें दस हजार तो अफ्रीकी देशों से आये वीसा ओसवाल जाति के लोग हैं । इन लोगों ने लन्दन में शताधिक एकड़ जमीन लेकर उसमें जैन मन्दिर की स्थापना की है । मदिर का निर्माण तो अभी शुरू भी नहीं हुआ है, अभी तो एक पूर्व-निर्मित मकान में ही भगवान विराजमान हैं, पर उन्होंने वहाँ बड़े-बड़े दो विशाल हॉल अवश्य बना लिए हैं, जिसमें हजारों व्यक्ति एक साथ बैठकर प्रवचन सुन सकते हैं । उनके शादी-विवाह आदि के कार्यक्रम भी उन्हीं हॉलों में सम्पन्न होते हैं ।
भगवानजीभाई भी वीसा ओसवाल जाति के ही हैं । अतः उनके सुपुत्र श्री लक्ष्मीचन्दभाई एवं भीमजीभाई चाहते थे कि आगामी कार्यक्रम उसी हॉल में रखे जायें एवं सम्पूर्ण वीसा ओसवाल समाज को आमंत्रित किया जाए । अतः उनका अति आग्रह था कि उन्हें आगामी वर्ष का कार्यक्रम अभी से दिया जाए, जिससे वे सब कार्यक्रम व्यवस्थित कर सकें और समुचित प्रचार-प्रसार भी कर सकें।