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आत्मा ही है शरण
करके वे इतने प्रभावित हुए कि उनका जीवन ही बदल गया । अब वे स्वाध्याय भी करते हैं और अध्यात्म में गहरी रुचि भी लेने लगे हैं। इसकारण उनका सम्पूर्ण परिवार आनन्द विभोर था । मुकुन्दभाई ने इस वर्ष भी भरपूर चर्चा की और सब काम छोड़कर हमारे सभी कार्यक्रमों में शामिल हुए ।
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यहाँ पर दो दिन में पाँच प्रवचन हुए, चर्चा भी खूब हुई । कुन्दकुन्दशतक के अतिरिक्त समयसार की गाथाओं पर भी प्रवचन हुए ।
२६ जून को अटलांटा पहुँचे । यहाँ सन्तोष कोठारी के घर पर प्रवचन रखा गया । कुन्दकुन्दशतक पर हुए प्रवचन के उपरान्त देर रात तक तत्त्वचर्चा भी चलती रही ।
अटलांटा से २७ जून को रोचेस्टर पहुँचे । यहाँ तीन प्रवचन विभिन्न लोगों के घरों में एवं एक अन्तिम प्रवचन शनिवार को प्रातः १० बजे इन्डियन कम्यूनिटी हॉल में हुआ । प्रवचनों की विषयवस्तु कुन्दकुन्दशतक की गाथाएँ एवं क्रमबद्धपर्याय रहे । प्रत्येक प्रवचन के बाद लगभग एक-एक घंटे आध्यात्मिक चर्चा भी हुई ।
शनिवार को ही दोपहर की फ्लाइट से चलकर डिट्रोयट पहुँचे, जहाँ शनिवार की शाम को व रविवार को दोपहर का प्रवचन रखा गया था । सोमवार को भी रात को प्रवचन रखा गया था । यहाँ प्रवचनों के अतिरिक्त अनेक आध्यात्मिक विषयों पर गहरी तत्त्वचर्चा भी हुई ।
३ जुलाई, १९९० को शिकागो पहुँचे, जहाँ ४ जुलाई, १९९० को प्रातः १० बजे एवं सायं ४ बजे से हॉल में प्रवचन रखे गये थे । ४ जुलाई अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस है । अतः वहाँ इस दिन अवकाश रहता है । ५ जुलाई, १९९० को निरंजनभाई के घर पर ही प्रवचन रखा गया था। सभी प्रवचन व चर्चा बहुत ही प्रभावक रहीं । निरंजनभाई ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में आने की भावना भी प्रगट की । वे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में पधारे भी थे तथा १ लाख ५० हजार रुपये का सहयोग भी