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जीवन-मरण और सुख-दुख
(कर्नाटक) सर्वश्री श्रेणिकभाई कस्तूरभाई अहमदाबाद, साहू अशोककुमारजी
जैन दिल्ली, दीपचंदजी गार्डी बम्बई, सी. एन. संघवी बम्बई, रतनलालजी गंगवाल कलकत्ता एवं निर्मलकुमारजी सेठी लखनऊ आदि प्रमुख थे ।
इस कॉन्फ्रेन्स में अनेक सत्र आयोजित थे । प्रत्येक सत्र का संयोजन अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा किया जाता था । प्रत्येक सत्र में २ या ३ मुख्य वक्ता रहते थे । इस प्रसंग पर चि. परमात्मप्रकाश भारिल्ल भी पहुँच गये थे। वे अपने व्यापारिक कार्य से एन्टवर्व (वल्जियम) गये थे । वहीं से इसमें भाग लेने आ गये थे । उद्घाटन सत्र में उन्होंने भी अपने विचार व्यक्त किये थे ।
विश्व जैन कॉन्फ्रेंस के जिस सत्र में मेरा व्याख्यान था, उस सत्र का संयोजन श्री निर्मलकुमारजी सेठी को करना था । अतः हम एक साथ स्टेज पर तो थे ही, उन्होंने ही उपस्थित समाज को मेरा परिचय भी दिया था। उस सभा में मैंने जैन समाज की एकता एवं शाकाहार पर विचार व्यक्त किये थे, जिनका संक्षिप्त सार इसप्रकार है -
आज अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि इस महान उत्सव में जैन समाज के सभी सम्प्रदाय एकत्रित हैं और मिलजुलकर सभी कार्य सम्पन्न कर रहे हैं। ___ मलिन वस्तुओं को भी निर्मल कर देनेवाला गंगा का अत्यन्त निर्मल जल भी जब घड़ों में कैद हो जाता है तो दूसरों को पवित्र कर देने की उसकी क्षमता तो समाप्त हो ही जाती है, वह स्वयं ही दूसरों के छू लेने मात्र से अपवित्र होने लगता है ।
गंगा के पवित्र जल में बिना किसी भेदभाव के सभी नहाते हैं और अपने को पवित्र अनुभव करते हैं, परन्तु जब गंगा का जल लोग अपने घड़ों में भर लेते हैं तो वह गंगा का जल गंगा का जल न रहकर ब्राह्मण का जल, क्षत्रिय का जल, शूद्र का जल हो जाता है । यदि एक जाति