________________
आत्मा ही है शरण
112
लोक में कहावत भी है कि 'कौओं के कोसने से ढोर (पशु) नहीं मरते'। यदि कौओं के कोसने से पशु मरने लग जावें तो जगत में एक भी पशु का बचना संभव नहीं है, क्योंकि लोक में कोसने वाले कौओं की कमी नहीं है। ___ आशीर्वाद के सन्दर्भ में भी यही बात है । प्रत्येक माँ अपने प्रत्येक वालक को अत्यंत पवित्र हृदय से भरपूर आशीर्वाद देती है, पर एक ही माँ का एक बालक विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करता है और दूसरा अनुत्तीर्ण हो जाता है । एक जिलाधीश बन जाता है और दूसरे को चपरासी बनना पड़ता है । यदि माँ के आशीर्वाद से कुछ होता हो तो दोनों बालकों को एक-सा फल प्राप्त होना चाहिए, पर ऐसा देखने में नहीं आता । सच्ची बात तो यह है कि यदि आशीर्वाद से कुछ होने की बात होती तो किसी का भी कुछ भी अनिष्ट होने की संभावना ही समाप्त हो जाती; क्योंकि प्रत्येक माँ अपने प्रत्येक बेटे को भरपूर आशीर्वाद देती ही है । ___ इससे यही प्रतिफलित होता है कि प्रत्येक व्यक्ति के सुख-दुख व जीवन-मरण उसके स्वयं के कर्मानुसार ही होते हैं । _ 'जैसा करोगे, वैसा भरोगे' की सूक्ति को सार्थक करने वाला आचार्य कुन्दकुन्द का यह कथन लोगों को अपने आचरण सुधारने की भी पावन प्रेरणा देता है । श्रद्धा ही आचरण को दिशा प्रदान करती है । जबतक हमारी श्रद्धा ही सम्यक् न होगी, तबतक आचरण भी सम्यक् होना संभव नहीं है । ___ जबतक छात्रों की श्रद्धा यह रहेगी कि पढ़ने से क्या होता है, विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान तो प्राध्यापकों की कृपा से ही प्राप्त होता है; तबतक छात्रों का मन पढ़ने में कैसे लगेगा? वे तो प्राध्यापकों को प्रसन्न करने के लिए उनके घरों के ही चक्कर काटेंगे ।