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मनुष्यों द्वारा जितना भी विनाश होता देखा जाता है, उसक मूल में क्रोधादि विभाव ही दखे जाते हैं। कहा भी है -
___ क्रोधोदयाद भवति कस्य न कार्यहानिः । क्रोध के उदय में किसकी कार्य हानि नहीं होती, अर्थात् सभी की हानि होती है | क्रोध के कारण सैकड़ों घर परिवार टूटते देखे जाते हैं। एक सत्य घटना है -
एक महिला का क्रोध आया और कुछ भी नहीं, जरा सी बात | पति से कहा-आप रोज-रोज राजखेड़ा जा रहे हो । आज आप हमें एक साड़ी लेते आना | उसने कहा आज नहीं, आज जरा जल्दी है, मैं कल परसों पुनः जाऊँगा, तब ले आऊँगा। उसने कहा तो नहीं लाओगे साड़ी। आज तू कुछ भी कह, आज कचहरी का काम है, आज नहीं ला पाऊँगा, कल या परसों निश्चित ही ले आऊँगा। अब क्या कही आज तुम साड़ी नहीं लाते हा तो मैं आज ही तुम्हें कुछ करके दिखा दूंगी। बिचारा सीधा सादा था। नहीं समझ पाया उसकी भाषा में, वह तो गया राजखेड़ा और इधर यह दो छोटे-छोट बच्चों को एक को काँख में दबाया एक की उंगली पकड़ी, लोटा लिया हाथ में जंगल का बहाना बनाकर चली गयी। जाकर के कुँए में दोनों बच्चों को पटक दिया और स्वयं कूद पड़ी। जब लागों को मालूम पड़ा ता लोग दौड़े।
जाकर के कुँए से उसे बाहर निकाला, वह तो जीवित निकल आयी, परन्तु छाटे-छोटे बच्चे तुरन्त ही समाप्त हो गय | वह महिला आज भी अपनी गलती पर, अपन द्वारा किये हुए क्रोध पर पश्चात्ताप कर रही है। किसी के सामने मुँह भी नहीं दिखा पा रही है। इस
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