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चरित्र पढ़ते हैं और उनको निरखते हैं, अन्त में सब कोई कैसे-कैसे अलग हुए, कैसे निर्वाण पाया, तो वहाँ अपनी बुद्धि ठिकाने आती है कि, अरे ! हम उद्दण्डता न करें, अन्याय न करें, अपनी आत्मा को सावधान रूप रखें । ऐसी एक शिक्षा मिलती है। अरे! इस जीवन में न मिला लाखों का धन तो उससे इस जीव का बिगाड़ क्या ? थोड़े ही में गुजारा कर लेना है | जो गृहस्थ धर्म का पालन करता है, वह बड़ी शान्ति समृद्धि में बना हुआ है ।
करणानुयोग के अध्ययन की उपयोगिता का दिग्दर्शन-करणानुयोग का जब अध्ययन करते हैं तो करणानुयोगी की बहुत बड़ी विशेषता है। प्रभाव डालने के लिए यानी दुनिया का कितना बड़ा क्षेत्र है, लोक कितना बड़ा है, यहाँ हम सर्वत्र पैदा हुए, यह कितना - सा प्रेम क्षेत्र है, यह किसने सिखाया ? करणानुयोग ने । काल अनादि अनन्त है और कैसे-कैसे काल की रचनायें बनती हैं, इतना काल मोह राग में गँवाया, यह किसने सिखाया ? करणानुयोग ने । जीव की दशायें कैसी-कैसीं विचित्र होती हैं, एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक नरकादिक गतियों में कैसे-कैसे जीव होते हैं, यह बात किसने सिखायी ? करणानुयोग ने | अब जरा उनका प्रभाव देखिये जब ज्ञान आता है कि यह सारा लोक क्षेत्र बहुत बड़ा है । जैसे अभी आज के विज्ञान से भी समझिये तो कहाँ अमेरिका, कहाँ रूस, कहाँ क्या, और कितना बड़ा हिन्दुस्तान और आगम से समझें तो 343 घनराजू प्रमाण लोक में आज की यह परिचित दुनिया लोक के आगे समुद्र के सामने एक अणु अथवा बूंद के बराबर है। इतने सारे लोक में हम कहाँ-कहाँ नहीं पैदा हुए और कहाँ-कहाँ नहीं पैदा हो सकते । एक इस थोड़े से क्षेत्र का ही मोह करने से इस जीव को क्या मिलता है ? जिस जगह पैदा हुए (कुछ थोड़ी-सी जगह जिसके अंदर में हुए) कुछ धन
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