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हैं-संसार में रुले या मोक्ष में पहुँच जाये | कभी-कभी यह जीव परेशान होकर भले ही कह देता है कि संसार असार है, संसार में कछ नहीं है. विडम्बना है। मगर यह कछ शोक में आकर कह रहा है, धर्म बुद्धि से नहीं। अन्दर में तो उसे वही सब अच्छा लग रहा है |
एक बूढ़ा बाबा अपने घर के सामने चबूतर पर अधिकतर बैठा करता था उसके घर 4-6 नाती पोते भी थे, सो प्रतिदिन व नाती पोते उसे बहुत परेशान किया करते थे | काई सिर पर चढ़ता, कोई मूंछ पकड़ता, कोई हाथ-पैर झकझोरता तो वह बूढ़ा बाबा अपन उन नाती पोतों से बहुत तंग आ गया था, क्योंकि रोज रोज उसकी यही हालत हुआ करती थी। एक दिन वह बूढ़ा अपने उसी चबूतरे पर बैठा हुआ रा रहा था। वहाँ से एक सन्यासी निकला, उस सन्यासी ने उस बूढ़ बाबा से रोने का कारण पूछा तो उसने रोने का कारण यह बताया कि महाराज हमारे नाती-पोते हमें बहुत हैरान करते हैं। तो सन्यासी बोला-क्या हम तुम्हारा यह दुःख मेंट दें? हाँ-हाँ मेंट दीजिये, आपकी बहुत बड़ी कृपा हागी। देखिय उस बूढ़े बाबा ने समझा कि शायद सन्यासी जी कोई ऐसा मंत्र पढ़ देंगे कि फिर वे नाती-पोते हमे तंग न करेंगे, बल्कि हमार चरणों लोटते फिरेंगे | पर सन्यासी ने कहा-बाबा जी आप घर छोड़ दीजिये और हमारे साथ चलिये, बस तम्हारा यह दःख दर हो जायेगा। तो सन्यासी की इस प्रकार की बात सुनकर वह बूढ़ा बाबा बहुत झुंझलाया, बोला कि अरे हमार नाती पोते, हमारे ही रहेंगे, हम उनके बाबा ही रहेंगे, तुम तीसरे कौन आ गये बीच मे फूट डालने वाले? इतनी बात सुनकर सन्यासी आगे बढ़ गया। कहने का तात्पर्य है कि जिस चेतन व अचेतन परिग्रह से ये जीव दुःखी होते जाते हैं, उसे ही अपनाते जाते हैं | पर इसमें सार कुछ भी नहीं है। जिन परजीवों में, परपदार्थों में
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