________________
अधिक जले शरीर का इसके अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं है।
सेठ जिनदत्त उसी क्षण सोमशर्मा के घर पहुँचे । सोमशर्मा ब्राह्मण तो कहीं बाहर गया था, अतः उसकी पत्नी से सेठ जी ने तेल देने की प्रार्थना की। उस ब्राह्मणी ने ऊपर एक कमरे में ले जाकर कहा-सेठजी | यह अनेक घड़े तेल से भर हुये रखे हैं, इनमें स एक घड़ा तेल ले जाइये।
जिनदत्त ने एक घड़ा सिर पर रखा और सीढ़ियों से उतरने लगा, किन्तु अकस्मात् उनक हाथ से घड़ा गिर गया और फूट गया । जिनदत्त का बहुत डर लगा, अब क्या होगा? उसने डरते-डरते ब्राह्मणी से घड़ा फूटने की बात कही, तब ब्राह्मणी ने कहा-कोई बात नहीं। जाओ, दूसरा घड़ा ले जाआ | सेठ क हाथ से पुनः दूसरा घड़ा भी फूट गया। बेचार बहुत घबड़ाये, फिर भी ब्राह्मणी न शान्ति से कहा-जावो, तीसरा घड़ा ले जाओ ।
तीसरा घड़ा भी गिरकर फूट गया। अब तो सेठ जी थर-थर काँपने लगे। किन्तु ब्राह्मणी ने कहा-सेठ जी! चिन्ता की कोई बात नहीं, तुमन जानकर तो घड़े फोड़ नहीं हैं । शान्ति रखो, चौथा घड़ा ले जावो | देखो! तुम्हें जितने भी तेल की जरूरत हो, ले जाना, डरना नहीं।
अब बेचार सेठ जी बहुत ही संभलकर चले और चौथा घड़ा तेल का लकर अपने घर आ गये | मुनिराज के जले घावों पर लगाया, तब उन्हें कुछ शान्ति हुई। किन्तु वे मन में सोचने लगे - अहो! कोई भी महिला हो या पुरुष, उसका इतना बड़ा नुकसान हो जाने पर गुस्सा आये बगैर नहीं रह सकती। इस ब्राह्मणी में भला इतनी शान्ति, इतनी क्षमा कहाँ से आ गई?
56