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जायेगा । राजा जंगल में चला गया और 3-4 माह में दाड़ी बढ़ाकर साधु वेष में भिक्षा माँगने उस सेठ के घर पहुँचा । सेठ की बहू साधु की आवाज सुनकर बाहर आई । साधु ने बहू से वचन ले लिया, वह भिक्षा में जो माँगेगा वह देना पड़ेगा । बहू ने सोचा एक साधु क्या माँगेगा, उसने वचन दे दिया । साधु बोला मुझे भिक्षा में आम चाहिये । उस समय आम का मौसम नहीं था, अतः बहू सोचने लगी इसने यह क्या माँगा इसे आम कहाँ से दें, आम का तो अभी मौसम ही नहीं है । वह भगवान की भक्त थी उसने पंच परमेष्ठी भगवान का स्मरण किया और बोली- हे भगवन् ! यदि विदेश में मेरे पति का ब्रह्मचर्य सच्चा हो तो आम का पेड़ उग जाये । उसके बोलते ही वहाँ आम का पेड़ उग गया। साधु वेष में राजा भी आश्चर्य में पड़ गया । वह बोला - पेड़ से क्या होता है मुझे तो आम चाहिये । बहू ने फिर से भगवान का स्मरण किया और बोली- हे भगवन् ! यदि मेरा ब्रह्मचर्य सच्चा हो तो इस वृक्ष में आम के फल लग जायें, वह बहू पूरा बोल भी नहीं पाई कि वृक्ष में आम के फल लग गये । यह सब देखकर नगर के बहुत से व्यक्ति इकट्ठे हो गये, मंत्री जी भी वहाँ आ गये और समझ गये कि राजा साधु वेष में आया है । साधु जी बोले कच्चे आम थोड़े ही खाये जाते हैं, मुझे तो पके हुये आम चाहिये। बहू सोचने लगी अब क्या करें, उसने पुनः भगवान का स्मरण किया और बोली- यदि यहाँ के राजा का ब्रह्मचर्य सच्चा हो तो ये आम के फल पक जायें । पर एक भी आम नहीं पका, बहू ने पुनः बोला यदि यहाँ के राजा का ब्रह्मचर्य सच्चा हो तो आम के फल पक जायें, जब एक भी आम नहीं पका तो राजा का सिर झुक गया। मंत्री जी ने राजा से कहा-राजन् यह आपकी इज्जत का सवाल है । राजा के भाव पलट गये, और अब तीसरी बार बहू ने पुनः बोला- यदि यहाँ के राजा का
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